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(संदर्भ-9 दिसम्बर जन्म दिवस)
दूसरे सप्तक के कवियों में प्रमुख नाम रघुवीर सहाय का आता है। हिंदी के विलक्षण कवि,लेखक,पत्रकार, सम्पादक,अनुवाक,कथाकार,आलोचक रघुवीर सहाय का जन्म ९ दिसम्बर १९२९ को लखनऊ(उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इन्होंने १९५१ में अंगेजी साहित्य में स्नातकोत्तर किया। १९६४ से साहित्य सृजन करना प्रारंभ किया। इनका विवाह १९५५ में विमलेश्वरी सहाय से हुआ।
इनकी प्रमुख कृतियाँ-‘सीढ़ियों पर धूप में’,’आत्म हत्या के विरुद्ध’,’हँसो हँसो जल्दी हँसो’,’लोग भूल गए हैं’,’कुछ पते कुछ चिट्ठियां’ और ‘एक समय था’ जैसे कुल छह काव्य संग्रह हैं। ‘रास्ता इधर से है'(कहानी संग्रह),’दिल्ली मेरा परदेश’ और ‘लिखने का कारण'(निबन्ध संग्रह) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
रघुवीर सहाय हिंदी के साहित्यकार के साथ साथ एक अच्छे पत्रकार थे,उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत लखनऊ से प्रकाशित दैनिक नवजीवन में १९४९ से की। आप उप-संपादक और सांस्कृतिक संवाददाता रहे,उसके बाद १९५१-५२ तक दिल्ली में ‘प्रतीक’ के सहायक सम्पादक रहे। फिर ५३-५७ तक आकाशवाणी के समाचार विभाग में उप-संपादक भी रहे।
रघुवीर सहाय की ‘बारह हंगरी कहानियां’ राख और हीरे शीर्षक से हिंदी भाषान्तर भी समय समय और प्रकाशित हुए। उनकी कविताओं के भाषा और शिल्प में पत्रकारिता का तेवर दृष्टिगत होता है। तीस वर्ष तक हिंदी साहित्य में अपनी कविताओं के लिए रघुवीर सहाय शीर्ष पर रहे। समकालीन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण स्तम्भ रघुवीर सहाय ने अपनी कविताओं में १९६० के बाद की हमारी देश की तस्वीर को समग्रता से प्रस्तुत करने का काम किया। उनकी कविताओं में नए मानवीय सम्बन्धों की खोज देखी जा सकती है। वे चाहते थे कि, समाज में अन्याय और गुलामी न हो तथा ऐसी जनतांत्रिक व्यवस्था निर्मित हो, जिसमें शोषण,अन्याय, हत्या,आत्महत्या,विषमता, दास्तां,राजनीतिक संप्रभुता, जाति-धर्म में बंटे समाज के लिए कोई जगह न हो।
वे चाहते थे कि,आजादी की लड़ाई जिन आशाओं और सपनों से लड़ी गई है, उन्हें साकार करने में यदि बाधाएं आती है तो उनका विरोध करना चाहिए।
१९८४ में रघुवीर सहाय को कविता संग्रह (लोग भूल गए हैं) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी कविताओं में आम आदमी को हाशिए पर धकेलने की व्यथा साफ दिखाई देती है। उनकी कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
जितनी बूंदें
उतने जो के दाने होंगे
इस आशा में चुपचाप गांव यह भीग रहा है।
१९८२-९० तक इन्होंने स्वतन्त्र लेखन किया। ‘वे तमाम संघर्ष जो मैंने नहीं किए,अपना हिसाब मांगने चले आते हैं’,ऐसी पंक्तियां रचने वाले रघुवीर सहाय जन मानस में एक दीर्घजीवी कवि थे जिनकी कविताएं स्वतन्त्र भारत के निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की पीड़ा को दर्शाती है। नई कविता के दौर में रघुवीर सहाय का नाम एक बड़े कद के कवि के रूप में स्थापित हुआ था। १९५३ में रघुवीर सहाय एक छोटी-सी कविता लिखते हैं-
‘वही आदर्श मौसम
और मन में कुछ टूटता-सा
अनुभव से जानता हूं कि यह बसन्त है।’
रघुवीर सहाय की अधिकांश कविताएं विचारात्मक और गद्यात्मक हैं। वे कहते थे ‘कविता तभी होती है जब विषय से दूर यथार्थ के निकट होती है’। रघुवीर सहाय भाषा सृजक रहे हैं। उनकी भाषा बोल-चाल की भाषा है। आदमी की भाषा में छिपे आवेश को बनाने का प्रयास रघुवीर सहाय करते थे। भारत में आदमी की समस्याओं और विरोधी व्यवस्था में राजनीति तथा जीवन के परस्पर सम्बन्ध को बचाए रखने का प्रयास उनकी कविताओं में दिखाई देता है। इस श्रेष्ठ कवि क़ो जन्मदिन पर सादर नमन।
#राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’
परिचय: राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ की जन्मतिथि-५ अगस्त १९७० तथा जन्म स्थान-ओसाव(जिला झालावाड़) है। आप राज्य राजस्थान के भवानीमंडी शहर में रहते हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है और पेशे से शिक्षक(सूलिया)हैं। विधा-गद्य व पद्य दोनों ही है। प्रकाशन में काव्य संकलन आपके नाम है तो,करीब ५० से अधिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। अन्य उपलब्धियों में नशा मुक्ति,जीवदया, पशु कल्याण पखवाड़ों का आयोजन, शाकाहार का प्रचार करने के साथ ही सैकड़ों लोगों को नशामुक्त किया है। आपकी कलम का उद्देश्य-देशसेवा,समाज सुधार तथा सरकारी योजनाओं का प्रचार करना है।
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