धीर गंभीर,तुम मर्यादित सागर
हमेशा तुम मर्यादित रहते,
नीले आसमान-सा तेरा अम्बर
मन हर्षित कर जाता है,
उर में रत्नों का संसार समेटे
तनिक घमंड न तुमको आता,
उछलती-कूदती और लहराती लहरें
धरती का आलिंगन करने,
किनारे तक आतीं
नृत्य करतीं और लहराती,
हर-हर कर शब्द निरंतर
मन पुलकित कर जाती,
शाम ढले रक्तरंजित हो सागर
भक्षण मानो सूरज का कर लेता।
#सुमन त्रिवेदी
परिचय:सुमन त्रिवेदी की जन्मतिथि- मार्च १९५० और जन्म स्थान-जबलपुर (मध्यप्रदेश) है। वर्तमान में भी श्रीमती त्रिवेदी जबलपुर में एम.आर.-४ सड़क स्थित कालोनी में निवासरत हैं। स्नातकोत्तर तक आप शिक्षित होकर स्वतंत्र काव्य एवं लघुकथा लेखन में सक्रिय हैं। प्रकाशन में साझा संग्रह में मृगनयना,सफ़रनामा आदि आपके नाम हैं। सम्मान के रुप में आपको युग सुरभि, साहित्य सागर,हिंदी सेवी रचनाकार तथा श्रेष्ठ कवियित्री उपाधि से अभिनन्दित किया गया है। आपके मुताबिक लेखन का उद्देश्य-आत्मसंतुष्टि एवं हिन्दी को शीर्ष स्थान दिलाना है।
बहुत सुंदर हहर हहर शब्द को पढ़कर ही सागर के निकट होने की अनुभूति होती है