बड़ा याद आता है वो बचपन का ज़माना,
माँ की गोद में सोना और दोस्तों संग पतंग उड़ाना,
छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से रुठ जाना,
वो बट्टी बोल एक-दूसरे को गले लगा फिर एक हो जाना।
वो भी क्या दिन थे जब हम मिट्टी में खेलते थे,
पेड़ो से आम तोड़ने के लिए, एक-दूसरे पर खड़े हो एक-दूसरे का बोझा भी झेलते थे,
खेलते थे खेल हम जो,सभी बड़े निराले थे,
मस्ती में घूमते थे,और कहते ह सब मतवाले थे,
छोटी-सी साईकल होती थी हमारे पास,
और लेकर निकल पड़ते थे उसे हम कहीं दूर-दराज़।
बड़े से आंगन में खुले आसमान के नीचे, नानी हमें कहानियां बड़ी सुनाती थी,
रात में भूत के नाम से हम उन्हें डराते, और झूठ-मूठ में वो भी डर जाती थी।
गिल्ली-डंडा,बर्फ-पानी जैसे खेल तो अब पुराने हो गए,
भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अपनों से अनजाने हो गए।
नानी की कहानी,दादी की डांट सुने तो ज़माने हो गए,
वो भी क्या दिन थे,कहते-कहते हम जवानी में बचपन के दीवाने हो गए।
त्यौहार पर दादा-दादी के पैर छूना पुराने रिवाज़ हो गए, बैठकर बचपन की यादें ताज़ा करते हुए न जाने कितने इतवार हो गए।
उम्र बढ़ती रही और वो न जाने मन में कहाँ खो गया,
वो हमारा बचपन है रुठकर आंख मूंद सो गया।
आखिर एक ही तो है हमारा सबसे अनमोल खज़ाना,
बड़ा याद आता है वो बचपन का ज़माना॥
#शिवानी गीते
परिचय: लेखन में शिवानी गीते का उपनाम-वाणी है। इनकी जन्मतिथि-३ अगस्त १९९७ तथाजन्म स्थान-खरगोन(मध्यप्रदेश)हैl आप वर्तमान में इंदौर में निवासरत हैं। शिक्षा-बीए(पत्रकारिता एवं जनसंचार) है तो पेशा यानी कार्यक्षेत्र भी पत्रकारिता ही हैl लेखन के नाते ही समाज से जुड़ाव है। दैनिक अखबार में कविता प्रकाशित हुई है तो उपलब्धि यही है कि,प्रसिद्ध समाचार वेब पोर्टल पर लेख लगे हैं। इनके लेखन का उद्देश्य दूसरों तक अपने विचार भेजना एवं समाज में हो रही गतिविधियों की आमजन को जानकारी देना है।