मेरा देश बदल रहा है,
न जाने किस दिशा में बढ़ रहा है।
क्या-कुछ सोच कर गए थे हमारे देश के नेता,
दुनिया में नाम रोशन करेंगे हमारे देश के बेटे।
मगर यह तो घूम रहे इतिहास की चादर लपेटेll
क्या जानें यह लोग,
किस तरह यह स्वर्णिम इतिहास गढ़ा होगा।
कुछ नहीं जानते ये निरे मूर्ख,
क्या इन्होंने कभी इतिहास भी पढ़ा होगाll
जिस वीरांगना ने इतिहास में अपना परचम लहराया था,
जौहर करके जिसने,अपना जौहर दिखलाया था।
रक्षा करने उतरे हैं ये,उस मां पदमावती की,
रक्षा भी अब कर लो तुम,उस औरत-बहन-बेटी कीll
जब हुआ था उन पर अत्याचार,
कहाँ थे तुम्हारे शिष्टाचार।
न जाने उस बेगुनाह को,
कितना उन दरिंदों ने नोंचा होगा।
उस वक्त तुम ने उसका,
क्या इक आंसू भी पोंछा थाll
कितनी उन्नति हुई है मेरे देश की,
जहां गरीब भूखा सो रहा है,
वहीं किसी की गर्दन काटने को पैसे बंट रहे हैं।
जागो देश के पूतों,
सीमा पर सैनिकों के सिर कट रहे हैंll
सच में मेरा देश बदल रहा है,
न जाने किस दिशा में बढ़ रहा हैll
#महक वर्मा
परिचय : महक वर्मा की जन्मतिथि-३ मार्च १९९९ तथा जन्मस्थान-इंदौर हैl आपका निवास शहर भी इंदौर(मध्यप्रदेश) हैl शिक्षा-बीए(पत्रकारिता एवं जनसंचार)हैl लेखन का उद्देश्य-अपनी भावनाओं एवं विचारों को शब्दों में पिरोकर लोगों तक पहुंचाना है।
Excellent poem written by Mahak!!! Depicts the true, harsh reality of today’s society!
Mahak will surely soar high with her pen! I wish All the very Best in her endeavors!