नहीं लगता…

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krishnkumar nirav
वतन का रूप बदलेगा कभी,मुझको नहीं लगता,
चमन खुशबू से महकेगा कभी,मुझको नहीं लगता।
खिलेंगे फूल खुशियों के गरीबों के भी जीवन में,
अब ऐसा सूरज निकलेगा कभी,मुझको नहीं लगता।
दिनों-दिन जिस कदर अपने में बढ़ती जा रही महंगाई,
चने का भाव उतरेगा कभी,मुझको नहीं लगता।
गगन के चांद को जब राहु ने है ग्रस लिया पूरा,
किसी कीमत पे उगलेगा कभी,मुझको नहीं लगता।
तुम्हें लगता है यह जो फिर,चुगेगा हंस भी मोती,
समय इतना भी सुधरेगा कभी,मुझको नहीं लगता।
मैं अपने में बहुत सोचा जब,उसने यह कहा मुझसे,
दूध हर घर में निकलेगा कभी,मुझको नहीं लगता।
सियासी बादलों का दल भले ही क्षेत्र में दौड़े,
किसी हालत में बरसेगा कभी,मुझको नहीं लगता॥
                                                #डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’

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