नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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इधर उधर की बाते,
बिना बात की बाते,
कुछ लोगो के चेहरे
ही उनका गिरापन
हर पल है दिखलाते,
बिना बात इठलाते
बेशर्म बड़े कभी भी
अपनी हरकतो पर
ना शर्माते,
बिन पेंदी के है लौटे
अपनी जरूरत के
मुताबिक इधर उधर
लुढकते है जाते,
कपटी शब्द भी इन्हें
देखकर , अपनी जान
बचाकर इधर उधर भाग
कर अपनी जान बचाते।
लंबे लंबे है दानव से इनके
नाखून,बिना मतलब लोगो
के भरे जख्म भी कुरेद कर
फिर से हरे भरे है कर जाते,
सचमुच बिन पेंदी के लौटे,
इधर – उधर लुढक – लुढक
अपने चरित्र हरदम दिखलाते
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