पीड़ा

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kumari archana
ये पीड़ा
वो पीड़ा,
जाने कितनी पीड़ाओं में
व्यक्तित्व दबा है।
देह पीड़ा में
रोगों की छाया से,
शरीर कुंद हुआ।
मन पीड़ा में
ह्रदयाघात हुआ,
अंर्तमन अंत:पीड़ा में
अवचेतन शून्य हुआ,
समाजिक पीड़ा में
मानंसिक कुठा पैदा हुई,
सबके-सब पीड़ा में हैं।
और ये मिलती कहाँ से
खुद मुझसे,
मेरे अपनों से
समाज से,
परिवार से।
चक्रीय रूप में ये
पृथ्वी जैसी घूमती है,
जीवन में पीड़ा का
रूप नित बदलता रहता,
अन्तरिक पीड़ा बाह्र पीड़ा बन जाती
बाह्र पीड़ा अन्तरिक पीड़ा रूप ले लेती,
व्यक्ति को जब पूर्वाभास होता
जीवन का दिन कुछ शेष रहते।
क्या बौद्ध का कहा ही पूर्ण सत्य है
जीवन दु:खों से भरा पड़ा है,
सुख का कहीं नामोनिशान नहीं
मोक्ष ही अंत है पुन: दु:ख से बचने का,
तो ये जीवन का एकपक्षीय सत्य है।
मैं मानती हूँ जीवन में संघर्ष
और बाधाएं हैं,
पर दु:ख में रहते ही सुखों की तलाश
जीवन उदेश्य है,
तभी इन्सान को आनंदवाद की प्राप्ति होगी,
आओ इस आनंदवाद को ढूँढें खुद में॥

                                                   #कुमारी अर्चना

परिचय: कुमारी अर्चना वर्तमान में राजनीतिक शास्त्र में शोधार्थी है। साथ ही लेखन जारी है यानि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर लिखती हैं। आप बिहार के जिला हरिश्चन्द्रपुर(पूर्णियाँ) की निवासी हैं।

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