कौन हूँ मैं

0 0
Read Time6 Minute, 34 Second
cropped-cropped-finaltry002-1.png
‘कौन हूँ मैं’???,कितनी सहजता से हम इसे यत्र-तत्र चिंतन के विषय रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। सत्य तो यह है कि, ये विषय है ही नहीं,अपितु ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर तलाशते-तलाशते सदियाँ ही नहीं,अपितु न जाने कितने युग बीते हैं। कहते हैं कि जो इस प्रश्न का उत्तर देगा, वो ब्रम्हज्ञानी होगा या फिर कोई ब्रम्हज्ञानी ही इस प्रश्न का उत्तर दे सकता है। फिर हमारी क्या औकात कि,हम इस गुत्थी को सुलझा सकें। ब्रम्हज्ञानी क्या,  हम तो ज्ञानी भी नहीं हैं। हम तो अज्ञानी हैं और वो भी अव्वल दर्जे के। फिर भी नियंताओं के आदेश की अनुपालना और दुनिया रुपी पटल के प्रति अपने कर्तव्यबोध के आलोक में अपने विचार इस आशा से व्यक्त करता हूँ कि,आप विचार अवश्य कीजिए।
प्रश्न आपसे ही है-जब मैं कहता हूँ कि यह भवन,ये धन,ये वाहन मेरा है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं ही भवन,धन या वाहन हूँ। इसी प्रकार जब मैं कहता हूँ कि ये हाथ,ये पैर,ये शरीर या ये आत्मा मेरी है,तो इसका भी ये मतलब तो नहीं कि मैं ही कथित हाथ-पैर,शरीर या आत्मा हूँ,परन्तु जब मैं कहता हूँ कि मैं ओम अग्रवाल हूँ तो निश्चित है कि,मैं ही ओम अग्रवाल हूँ, लेकिन क्या यह सच है? हरगिज नहीं। यदि मेरा नाम विश्वनाथ होता, तो क्या मैं सच में भी विश्वनाथ होता? नहीं न! दरअसल मैं ओम अग्रवाल नहीं हूँ, अपितु ओम अग्रवाल मेरा नाम है।
यहीं पर यह सवाल उठता है कि,मैं ये भी नहीं, वो भी नहीं तो फिर आखिर मैं हूँ कौन?आईए,मैं बताता हूँ कि मैं
हूँ कौन ? माँ भारती की पावन पुण्य धरा पर आदिकाल से आध्यात्मिक ज्ञान चरम पर रहा है, और इसी आध्यात्म ने प्रतिपादित किया है ‘अहम् ब्रम्हास्मि।’ अर्थात मैं ब्रह्म हूँ,तो क्या हम स्वयं को ही ब्रम्ह मान लें ? हाँ, हम ब्रम्ह ही हैं किन्तु पूर्णता में नहीं,बल्कि अंश रूप में। जैसे सागर का अथाह जल भी जल ही कहलाता है,और उसी अथाह जल से लिया गया चुल्लू भर जल भी जल ही कहलाता है, जबकि दोनों में अंतर है विशालता का और व्यापकता का। इसी प्रकार वो भी ब्रम्ह है और हम भी ब्रम्ह हैं। अंतर है तो बस विशालता और व्यापकता का।
अब प्रश्न यह उठता है कि,यदि सचमुच ही हम ब्रम्ह हैं तो हमारी सुचिता,हमारी सौम्यता और हमारा ऐश्वर्य इतनी सहजता से कैसे खण्डित-विखण्डित हो जाता है?,जबकि ब्रम्ह तो सर्वशक्तिमान और अपरिवर्तनीय है। जी हाँ,ब्रम्ह निश्चित ही सर्वशक्तिमान और अपरिवर्तनीय है,परन्तु हम क्यों नहीं? यदि हम भी ब्रम्ह हैं तो हमें भी ऐसा ही होना चाहिए था। तो लीजिए,इसका भी जवाब-जब हम स्वयं को ब्रम्ह कहते हैं तो हम अंश या पूर्णता का भाव नजरअंदाज कर देते हैं। हम पूर्ण ब्रम्ह नहीं,अपितु ब्रम्हांश हैं। जिस प्रकार सागर से लिया गया एक लोटा जल तो दूषित-प्रदूषित या अमृत पंचामृत किया जा सकता है,परन्तु पूरे के पूरे सागर को ही प्रभावित कर पाना संभव ही नहीं है। या फिर किसी विशाल पर्वत श्रृंखला से ली गई एक शिला को खण्डित-विखण्डित या सुरूप किया जा सकता है,परन्तु पूरी की पूरी पर्वतमाला को ही प्रभावित कर पाना असम्भव है। इसी प्रकार हम ब्रम्हांश हैं तो परन्तु पूर्ण ब्रम्ह की शक्तियां हमारे में  नही आ सकतीं। यही कारण है कि, हमारी सुचिता,सौम्यता और ऐश्वर्यता बड़ी सहजता से प्रभावित हो जाती है।
मैं समझता हूँ कि,हमें हमारे प्रश्न ‘मैं कौन हूँ’ का उत्तर मिल गया है और उत्तर है- ‘अहम् ब्रम्हास्मि।’
                                                 #ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
परिचय: ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है। मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य हैं,परन्तु लगभग ७० वर्षों पूर्व परिवार यू़.पी. के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम. भी वहीं हुई। वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं। संस्कार,परंपरा,नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। ४० वर्षों से  लिख रहे हैं। लगभग सभी विधाओं(गीत,ग़ज़ल,दोहा,चौपाई, छंद आदि)में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।
काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० के करीब का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर ढेरों बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं।
आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

पढ़ाई जीवन का आधार

Mon Oct 30 , 2017
पढ़ाई मानव जीवन का आधार है, सरस्वती माता का प्यारा उपहार है। शारदे माँ का यह अनुपम सितार है, गुरू के आशीष से हमारा उद्धार है। तपस्वी गुरू की दिव्य दृष्टि निहार है, गुरू,ब्रह्मा,विष्णु,महेश आकार है। गुरूदेव अद्भुत ज्ञान का भण्डार है, विनम्रता विद्यार्थी का प्रवेश द्वार है। परिश्रम से […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।