#अविनाश तिवारीजांजगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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हिंदी हूँ मैं हिंदी
भारत के माथे की बिंदी।
कभी आसमान पर कभी रसातल पर घूमती अतरंगी
हिंदी हूँ मैं हिंदी।।
मुझे छोड़कर सेमिनारों में चलते अंगरीजी अक्षर
न्यायालय के कामकाजों की मुझको नही खबर
अपने ही देश तिरस्कृत होकर बन गई आज फिरंगी
हिंदी हूँ मै हिंदी।।
शेखी मारते मिडिया बोले आज हिंगलिश
हिंदी तो उपेक्षित पड़ी रौब मारे विकीलीक्स
पुस्तक में बंद पड़ी कब होउंगी मैं चंगी
हिंदी हूँ मैं हिंदी
मुझमें निराला मैं मधुशाला
गीतांजलि का शब्द मैं
गोदान मैं कफ़न मैं
असीमित अपरिमित
फिर हूँ मैं बन्दी
हिंदी हूँ मैं हिंदी
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