देश में कबाड़ और कबाड़ की परख करने वाले सैलाब की तरह आ रहे हैं। जहां कबाड़ दिखा,हुक लगाया उठा लिया। कबाड़ के पास रखी नई चीज भी उठा लेते हैं कबाड़ी-मोहल्ले से लेकर राजपथ,राजपथ से लेकर जनपथ तक। जनपथ यानी जनता का पथ या मार्ग तक अपनी बिना ठिए की दुकान लगाए घूमते हैं। अब उस मार्ग पर कोई भी चल सकता है, चला सकता है। साइकिल का जमाना गया,जब गांव की पगडंडी से लेकर राजपथ और जनपथ पर साइकिल चला करती थी,लेकिन विकास के साथ ही साइकिल फिर से पगडंडी पर आ गई। अब सड़क या राजपथ अथवा जनपथ पर कार चलती है,मोटर-साइकिल में लगी तो चल सकती है। घोड़ा गाड़ी और गधा गाड़ी का जमाना गया,पर गधों की चर्चा का जमाना अब भी है।
यह जरूरी नहीं कि,जनपथ पर कार ही चले। कभी-कभी बेकार भी चलने लगती है। बेकार जब चलते-चलते रुक जाती है तो जनपथ पर जाम लग जाता है। बेकार को उठाने के लिए सरकारी कबाड़ी आते हैं,और उठाकर ले जाते हैं। बेकार होना यानी कबाड़ी को न्यौता देना है। कुछ बेकार चीजें शहर में खाली स्थान पर तो,कभी सामने के मैदान में या फिर घर के सामने पड़ी रहती हैं। उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता। ध्यान तब जाता है,जब उस बेकार को कोई उठा ले जाता है। बाद में उसका ऐतिहासिक,राजनीतिक और आर्थिक महत्व मालूम पड़ता है और हल्ला मच जाता है।
ऐसी ही एक बेकार चीज कल कबाड़ी उठा ले गए। बाद में मालूम पड़ा कि,वह तो `वीआईपी बेकार`,यानी उस कबाड़ बेकार के मालिक की वजह से वह बेकार अब कारगार साबित हो रही है। बेकार कबाड़ कई किस्तों में बना था। उसके तार विदेशों से भी जुड़े थे। जैसे ही मीडिया ने बेकार कबाड़े को चोरी पाया तो,पूरा शहर और देश का आम आदमी दहल गया। अभी तक तो आम आदमी की चोरी होती थी, व्यापारियों से `जीएसटी` के बहाने,तो कभी सेवा कर के बहाने या फिर बख्शीस के बहाने उसकी जेब का सामान क्रेन से उठवा लिया जाता,लेकिन जब वीआईपी का कबाड़ उठा लिया गया तो,पूरा तंत्र-भ्रष्ट तंत्र-स्वतंत्र कहने वाले पत्रकार से लेकर मीडिया के पिता कहे जाने वाले तक सकते में आ गए। यह कैसे हो गया,अब उनकी भी खैर नहीं। पहला सवाल- खबर दें या नहीं दें। पुलिस भी पशोपेश में ये क्या हुआ,कैसे हुआ,हमें क्यों नहीं पता चला,कहीं हमारे ही गुर्गे ने तो हाथ नहीं दिखा दिया,घर के सामने के तालाब से कमल चुराकर भाग गया और हमें पता ही नहीं चला।
बेकार के लिए इतना हंगामा कैसे और क्यों हो रहा है। आखिर यह बेकार कबाड़ी उठा ले गए तो क्या बुरा किया। तीन साल से `बेकार` कबाड़ पड़ा था।
खैर देखने वाली बात यह है कि,कौन-सा राजनीतिक दल इस बेकार को उठाने वाले कबाड़ी को खोज निकालने के लिए आंसू बहाता,कौन इसे प्रशासन का निकम्मापन बताता है।
यह तय है कि,दिल्ली की आम जनता को अब पुलिस और प्रशासन दोनों से विश्वास उठ गया। कुछ लोग अब डर के मारे अपनी कबाड़ जैसी…को घर से बाहर जाने से भी रोक देंगे। पता नहीं,किसे ये कबाड़ पसंद आ जाए और वे इससे भी जाते रहें। चर्चा इस बात पर हो रही है कि,कबाड़ का रंग नीला था। अरे कबाड़ नीला हो या पीला या फिर हो काला बस भगवा और हिरवा नहीं होना चाहिए।
राही'
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) है| आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl