ख़्वाब बन के दिल में आया रूह में जलवा हुआ,
हो रहा है जिन्दगी में सब मिरा सोचा हुआl
यूं भी पूरा अक्स दिखलाने के काबिल था नहींं। कल तलक जो आईना न था टूटा हुआ।
मैं फ़ज़ाओं में परिन्दे की तरह उड़ने लगी,
जिस्म कल तक था पुरानी याद से जकड़ा हुआl
तीर की मानिन्द लब से कैसे निकला एक लफ़्ज़,
फिर तो अपने-आप ही मैं रात शर्मिन्दा हुआl
एक ने तोड़ा मुझे तो एक ने जोड़ा मुझे,
अब मिरे माज़ी का दरपन किस क़दर उजला हुआl
दिल में कितना दर्द जागा रात की तन्हाई में,
राब्ता कोई नहीं है फिर भी जाने क्या हुआl
दिल कुरदा जा रहा था मेरा माज़ी के लिए,
अनगिनत ज़ख़्मों में उभरा दर्द भी गहरा हुआl
इस मोहब्बत का सलीका मुझको बचपन में मिला,
वो मिरे किरदार की तामीर का हिस्सा हुआl
हाथ में आया जो तेरा हाथ तो ऐसा लगा,
कैसी क़ुदरत है कि अब तक था यही छूटा हुआl
`कल्पना` को दर्द से जिसने दिलाई है निजात,
मेरी नज़रों के लिए वो देवता ऐसा हुआll
परिचय : कल्पना गागड़ा हिमाचल राज्य के शिमला में रहती हैं। पेशे से आप सरकारी शिक्षा संचालनालय में अधीक्षक(वर्ग २)हैं। लिखने की वजह शौक है।