आ रहे हो न तुम

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kalpana
आई फिर एक रात,
तारों वाली
यादों वाली,
कैसी नींद
खुली आँखें,
कोरे ख्वाब।
पर नहीं,
साथ कभी
देता है प्रियतम,
जो रहता है
आसमाँ के पार।
तेज़ साँसों की ध्वनि,
देती है सुनाई
हवा के साथ,
बस जाती है
खुशबू साँसों में।
देखो न,
सुनो न
इतने बेरहम तो न थे,
कभी मिले नहीं तो क्या
इतने अंजान भी न थे।
दो धड़कनें हुई थी एक,
था वह पल मनोहर
याद करो,
जब देखा था चाँद तुमने भी
और फोन कर दिया था तुमने।
भागी थी मैं भी छत पर,
देखा था उसको
पर उफ्फ,
थे तुम विराजमान उसमें
आगोश में तब भी तुमने लिया था।
आज भी खड़ी हूँ,
उसी जगह
उसी चाँद के सामने,
आ रहे हो न तुम॥

                                                                    #कल्पना भट्ट

परिचय : पेशे से शिक्षिका श्रीमती कल्पना भट्ट फिलहाल भोपाल (मध्य प्रदेश ) की निवासी हैं। 1966 में आपका जन्म हुआ और आपने अपनी पढ़ाई पुणे यूनिवर्सिटी से 1984 में बी.कॉम. के रुप में की। विवाह उपरांत भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से बी. एड.और एम.ए.(अंग्रेजी) के साथ एलएलबी भी किया है। आप लेखन में शौकिया तरीके से निरंतर सक्रिय हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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