बस कर संजू बाबा,रुलाएगा क्या?

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prakashhindustani
फिल्म ‘भूमि’ देखकर लगता है कि,संजय दत्त जेल से नहीं छूटते तो ही बेहतर था। क्या ऐसी ही फिल्म में काम करना था? फिल्म में कोई नयापन नहीं है, पुरानी कहानी है। कुछ समय पहले आई `मातृ` और `मॉम` में बेटी से हुए अन्याय का बदला मां लेती है,इसमें बेटी के साथ हुए अन्याय का बदला पिता और बेटी मिलकर लेते हैं। संजय दत्त को फिर से स्थापित करने के लिए बनाई गई फिल्म में उन्होंने भावुकता से भरे दृश्य और मार-धाड़ वाले दृश्य अच्छे किए हैं। निर्माता को विश्वास नहीं था कि,फिल्म चल भी सकती है,इसीलिए सनी लियोन की मदद ली गई है। संजय दत्त के प्रशंसक इस फिल्म को देखकर माथा कूटेंगे।

छोटे शहर की जिंदगी,आम आदमी,लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया,लड़की की शादी की तैयारी,पिता-पुत्री का प्यार,पुत्री का आत्मनिर्भर होना,नायिका से दुष्कर्म और फिर मार डालने की कोशिश,नायिका का बच जाना, कोर्ट में घिसे-पिटे संवाद,मोहल्ले वालों की नकारात्मक भूमिका,अमानवीय पुलिसवाले और मानवीय दरोगा,नायिका और उसके पिता का बदमाशों से बदला लेना इस फिल्म में है। बीच-बीच में नारी शक्ति वाले संवाद तथा दो-चार चुटीले संवाद भी हैं। जैसे-‘लड़की का बाप तो बेचारा गूंगा ही होता है’, ‘गणेश वंदना में बांझन को पुत्र देत ही क्यों कहते हैं,बांझन को पुत्री देत क्यों नहीं’ और ‘अगर सफेद बाल तोड़कर निकाल दो,तो कई सफेद बाल निकल आते हैं। इसी तरह `अगर काले बाल तोड़कर निकाल दिए जाएं,तो काले बाल क्यों नहीं आते?’

आगरा और धौलपुर क्षेत्र की कहानी में ताजमहल कई बार दिखाया गया है। चंबल के बीहड़ों के दृश्य भी है, जहां स्थानीय धन पशुओं की संतानें ‘हाइड एंड चीख’ का खेल खेलते हैं। नायिका के पिता को आगरा में जूते-चप्पल की दुकान का मालिक दिखाया गया है,जो बेहद स्वाभाविक लगता है। उनके मकान की छत से ताजमहल दिखना भी दर्शकों को लुभाता है। फिल्म की नायिका भी एक साधारण युवती है,जो दुल्हनों के मेकअप का काम करती है। अन्य पात्र भी साधारण से लोग हैं,कोई मिठाई की दुकान का मालिक है,तो कोई होटल और सिनेमाघर संचालक है। `दीवार` में जिस तरह अमिताभ के हाथ पर खलनायक गोदना करवा देता है कि-`मेरा बाप चोर है`, उसी तरह इस फिल्म में संजय दत्त रेपिस्ट के माथे पर `रेपिस्ट` लिखवा देता है। दुष्कर्म के दृश्य फिल्माने में निर्देशक ने जितनी कल्पनाशीलता दिखाई है,उतनी और कहीं नहीं।

फिल्म के अनुसार पुलिस और न्यायालय संवेदनहीनता के चरम पर है। बदले की कहानी को लेकर कई फिल्में बन चुकी है। यह भी उन्हीं में से एक है। `भूमि` की कहानी २५-३० साल पुरानी फिल्मों की कहानी लगती है, जिसमें पिता-पुत्री का प्रेम बनावटी लगता है। संजय दत्त और अदिति राव हैदरी ने पिता-पुत्री की भूमिका में भावुकता वाले दृश्य देने की कोशिश की है।

                                                डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी

   लेखक परिचय: हिन्दी के पहले वेब पोर्टल ‘वेबदुनिया’ के पहले सम्पादक एवम् ब्लागर वरिष्ठ पत्रकार है|Website: http://prakashhindustani.com/

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