सभ्यते नियति-अभिशप्त
ग्रीष्म परितप्त,
अर्द्घ-नग्न पर्वत को
सुनहली मदिरा पिलाकर,
आलिंगन में बाँधकर
दिगम्बर क्यों बनाती हो?
उसके शुष्क श्यामल व्यथित पल-पल
गगन में लहराते कुन्तलों को,
कुल्हाड़ियों से काट-काटकर
क्यों अपने को सजाती हो?
उसके हृदय के ज़़ज़्बाती शोणित को
क्यों अपने पांवों का महावर बनाती हो?
अपने उच्छिष्ट शुष्क तथा
दंशित अधरों को,
सुगन्धित तरुओं के खून से
क्यों अरुणिम करती हो?
धरणीधर के अस्ति्त्व को
यों ही काटती और चबाती रहोगी,
तो रहेगी न धरती न आकाश
आग से भरा हुआ समुद्र
करेगा क्रूर अट्टहास॥
#डॉ उषा कनक पाठक
परिचय : डॉ उषा कनक पाठक की जन्म तिथि १० मार्च १९६३ और जन्म स्थान मिर्ज़ापुर है। आपका निवास उत्तर प्रदेश राज्य के शहर मिर्ज़ापुर में ही है। शिक्षा में आपने ४ विषयों में एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी, संस्कृत और इतिहास) पी.एच-डी.(संस्कृत) की है। सामाजिक क्षेत्र में सेवा कार्यों के लिए आप कुछ सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं।विधा गद्य एवं पद्य है। प्रकाशन में-तुलसी तेरे आंगन की, त्रिवेणी और अंजुरीभर आदि हैं, कुछ पत्र-पत्रिकाओं में निबन्ध एवं कविता प्रकाशित हैं। सम्मान के रुप में हिन्दीसेवी सम्मान मिला है। आपके लेखन का उद्देश्य स्वयं का सुख है।