Read Time55 Second
बिल्कुल सुई की नोंक पे चलने लगे हैं लोग,
स्तर से एकदम ही गिरने लगे हैं लोग।
कहने के लिए सिर्फ है हाथों में तराजू,
आंखों में धूल झोंक के ठगने लगे हैं लोग।
लगता है मोहल्ले में कोई हादसा हुआ,
घर से निकल के छत पे टहलने लगे हैं लोग।
डाकू तमाम संत की श्रेणी में आ गए,
गिरगिट की तरह रुप बदलने लगे हैं लोग।
पहले से कहीं ज्यादा डर लग रहा मुझे,
मजहब की ओर जब से बढ़ने लगे हैं लोग।
यह भी है एक गम को भुलाने का तरीका,
कुछ देर के लिए जो हंसने लगे हैं लोग।
इस जिंदगी ने इतना मजबूर कर दिया,
अब देखता हूं कुछ भी करने लगे हैं लोग॥
#डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
December 7, 2017
बाद मरने के
-
April 25, 2019
एक सोच या कल्पना-डिजिटल चुनाव का सपना।
-
December 6, 2018
समाज के प्रति साहित्यकारों का दायित्व
-
October 14, 2017
बेटा और बेटी
-
December 6, 2020
चलो दिल्ली घेरें