विश्व नागरी विज्ञान संस्थान, गुरुग्राम और केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में 22 अगस्त, 2019 को के. आई. आई. टी. वर्ल्ड ऑफ एजुकेशन के प्रांगण में ‘देवनागरी लिपि, वर्तनी और हिन्दी भाषा की संरचना: समस्याएँ और चुनौतियाँ’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी-व-कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के निदेशक और वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष प्रो. अवनीश कुमार। विश्व नागरी विज्ञान संस्थान के अध्यक्ष श्री बलदेव राज कामराह ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की। दीप प्रज्वलन के बाद संस्थान के महा सचिव और निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी ने अतिथियों स्वागत किया। संस्थान के उपाध्यक्ष और के. आई. आई. टी. ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़ के महा निदेशक डॉ. श्याम सुंदर अग्रवाल ने संस्थान कर परिचय देते हुए देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इस पर हो रहे शोध कार्यों की जानकारी दी और इस लिए उन्होंने इसके विकास के लिए वैज्ञानिक दृष्टि को अपनाना उचित बताया। इसके बाद प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी ने बीजभाषण देते हुए देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और ऐतिहासिकता की चर्चा करते हुए आज के संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता का भी उल्लेख किया। उन्होंने यह भी बताया कि देवनागरी लिपि संविधान में उल्लिखित 22 भाषाओं में से ग्यारह भाषाओं में प्रयुक्त होती है, । प्रो. गोस्वामी ने उदाहरणों के साथ देवनागरी लिपि और रोमन लिपि का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए बताया कि देवनागरी लिपि रोमन लिपि से कहीं अधिक वैज्ञानिक और सार्थक है। इसी के आधार पर हिन्दी वर्तनी का मानक रूप मिलना सरल और सुगम है। प्रो. अवनीश कुमार ने अपने संबोधन-भाषण में निदेशालय की गतिविधियों का परिचय कराते हुए यह भी बताया कि निदेशालय नागरी लिपि और हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण पर पछले 50 वर्षों से समय-समय पर कार्यगोष्ठियों और बैठकों का आयोजन करता है जिसमें समूचे देश से विभिन्न कार्यक्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञ विद्वान भाग लेते हैं। इन्हीं विशेषज्ञ-विद्वानों की संस्तुतियों के आधार एक पुस्तिका भी प्रकाशित करती है। श्री बलदेव राज कामराह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में बताया कि आचार्य विनोबा भावे ने देवनागरी लिपि को सार्वदेशिक और विश्वजनीन बनाने के लिए अभियान चलाया था, उसी को आगे बढ़ते हुए हमारा संस्थान आगे काम कर रहा है। उद्घाटन सत्र का संचालन निदेशालय के अधिकारी श्री हुकुम चंद मीणा ने किया और धन्यवाद प्रस्ताव संस्थान के संयुक्त सचिव श्री अशोक कुमार ने प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता सांस्कृतिक गौरव संस्थान, गुरुग्राम के मुख्य सला हकार और राजभाषा हिन्दी के विशेषज्ञ डॉ. महेश चंद्र गुप्त ने की। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी-विभागाध्यक्ष और डीन तथा केंद्रीय हरियाणा विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी-विभागध्यक्ष प्रो. नरेश मिश्र ने देवनागरी लिपि के ऐतिहासिक स्वरूप का विवेचन करते हुए उसकी विशिष्टताओं को सूक्ष्मताओं को स्पष्ट किया। साथ ही हिन्दी की संरचनाओं के मानकीकरण पर अपने विचार रखे। विश्वयात्री और अमरोहा के सुविख्यात कॉलेज के पूर्व हिन्दी-विभागध्यक्ष डॉ. कामता कमलेश ने देवनागरी लिपि की विशिष्टताओं पर चर्चा करते हुए कहा कि विभिन्न देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग देवनागरी लिपि से बहुत प्यार करते हुए और वे अपने धार्मिक ग्रंथों को अपनी लिपि में पढ़ने के लिए उत्सुक रहते है। वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव ने युवा वर्ग, विशेषकर विद्यार्थियों में देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा को प्रसारित करने के लिए प्रोत्साहित किया। राहुल जी ने भारत में अंग्रेज़ी के वर्चस्व पर दु:ख प्रकट करते हुए हिन्दी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग में लाने के लिए बल दिया। डॉ. महेश चंद्र गुप्त ने बताया कि हिन्दी भाषा भारत की सब से अधिक प्रयुक्त होने वाली भाषा है, इसी लिए इसे राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। उन्होंने भारतीय भाषाओं के प्रति हो रही उपेक्षा पर दु:ख प्रकट करते हुए अंग्रेज़ी के अधिकाधिक प्रयोग पर अपनी चिंता जताई।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता जनसत्ता समाचारपत्र के पूर्व संपादक और वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव ने की। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चंद्र लोहानी ने चीन के शंघाई प्रांत में हिन्दी सिखाने के निजी अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि चीन में हिन्दी के प्रति काफी रुचि है और इस लिए हिन्दी सिखाते हुए हिन्दी की संरचना की स्वाभाविकता और मानकता पर ध्यान देना आवश्यक है। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के पूर्व उप सचिव और समकालीन साहित्य पत्रिका के संपादक श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने हिन्दी के वैश्वीकरण के बारे में चर्चा करते हुए अल्पसंख्यक भाषाओं के उत्थान के बारे में भी बात की। के. आई. आई. टी. ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़ के शिक्षा महविद्यालय के निदेशक प्रो मंजीत सेनगुप्ता ने हिन्दी और भारतीय भाषाओं के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में चर्चा की। श्री राहुल देव ने भाषा और बोली के बारे में चर्चा करते हुए यह बताया कि कोई भी भाषा किसी अन्य भाषा से निम्न नहीं होती। उन्होंने हिन्दी को आज के संदर्भ में ज्ञान की भाषा बनाने पर बल दिया।
समापन सत्र में श्री बलदेव कामराह की अध्यक्षता में प्रो. गोस्वामी ने संगोष्ठी में हुई चर्चा का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि हिन्दी की अभिव्यक्ति का सही प्रतिनिधित्व करने में देवनागरी लिपि पूर्णतया सक्षम है। यह लिपि विश्व की तमाम लिपियों में सर्वाधिक वैज्ञानिक और उपयोगी है। यदि भारतीय भाषाएँ और विश्व की भाषाएँ इसे अपना लेती हैं तो विश्व में ऐक्य भावना पैदा होगी और उनमें आपसी वैमनस्य दूर होगा। अंत में अध्यक्ष महोदय द्वारा सभी विशेषज्ञ-प्रतिभागियों को स्मृति-चिह्न भेंट किए गए और धन्यवाद प्रस्ताव के साथ संगोष्ठी संपन्न हुई।
#अशोक कुमार
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई