पतझड़ बन जाये बसंत
मिले प्रकाश, तम का हो जाये अंत
गुरुवर पाकर एक झलक सुहावनी
कठोर पाषाण पिघल बन जाए पानी
हमको दिया आपने ज्ञान तेज
घुमड़ता था भीतर अज्ञान वेग
ईश्वर से भी आगे गुरुवर
करें हृदय से बारंबार सदा आदर
हर प्रकार से हम तो थे नादान
कच्ची, गीली मिट्टी के समान
ठोक -पीटकर सुंदर घड़ा बनाया
कठिन परीक्षा लेकर हमें तपाया
विद्या का अमर दान दिया
हमको पशुता से मनुष्य बनाया
भले-बुरे का जग में आभास कराया
गुरुवर, हमको एक अलग पहचान दिलाया
-मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगरा, उत्तर प्रदेश