निशदिन अब हो रही बरखा की फुहार,
पवन में भी महक है सोंधी- सोंधी-सी…
मीत रिझाने गीत गाते पक्षी गगन में,
ये प्रकृति भी करे है नित नए श्रृंगार।
पर मेरे हिय में क्यों सूनापन- सा आज?
सावन के इस रिमझिम से मौसम में,
हँसते मुस्काते सुंदर से सब चेहरे हैं…
मखमली हरियाली की ओढ़ चुनरिया,
धरती भी नई दुल्हन-सी सजी है।
मेरे बेचैन मन को मिला न चैन क्यों आज?
हर छोटे-छोटे पत्ते को ख़ुशी मिली ये कैसी,
ओस की बूंदों में सज गए जैसे कोई मोती..
तितली भी मुस्काई सतरंगी आँचल पाकर,
भंवरे गुनगुन करते तान में तान मिलाकर।
फिर भी क्यों खोया-सा है ये मन मेरा आज?
क्या करुं समझाऊँ कैसे होना नहीं उदास,
चलो उठो त्याग दुःख चिंता खुद से कहती…
छुपा वेदना मन में सारी और खुश रहती,
भीगो तुम भी बरखा में झूम- झूम के आज।
लेकिन फिर भी मन मेरा विचलित-सा आज?
#रश्मि ठाकुर
परिचय: रश्मि ठाकुर पेशे से शिक्षक हैं और कविताएँ लिखने का शौक है।आप मध्यप्रदेश के दमोह जिले के खमरिया(बिजौरा) में रहती हैं।लिखने का शौक बचपन से ही है,पर तब समय नहीं दे पाई। अब फिर से प्रेम विरह की रचनाओं पर पकड़ बनाई और प्रेम काव्य सागर से सम्मानित किया जा चुका है। पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है। सोशलिस्ट मीडिया पर भी आप सक्रिय हैं। रश्मि ठाकुर की जन्मतिथि-३ सितम्बर १९७७
तथा जन्म स्थान-खमरिया (दमोह) है। बी.ए.,एम.ए. के साथ ही बी.एड करके शिक्षा को कार्यक्षेत्र(स्कूल में सामाजिक विज्ञान की शिक्षिका)बना रखा है। आपके लेखन का उद्देश्य-झूठ छल फ़रेब औऱ अपने आसपास हो रही घटनाओं को नज़र में रखते हुए उनका वास्तविक चित्रण रचनाओं के माध्यम से करना है।
अद्भुत, आदरणीय।