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मई जून का माह है ऐसा,लगे कि सब जल जायेगा
इस गर्मी से हमे बचाने,बादल कब जल लायेगा।।
कोई कहता उमस बढ़ी है,किसी के गर्मी सिर पे चढ़ी है
खून किसी का उबल रहा है,किसी की बीपी सबपे बढ़ी है
जो चिड़ियां दौड़ा करती थी,देखो कितनी सुप्त पड़ी है
सोचूं कि जब आज है ऐसा,लेकर कल क्या आयेगा
इस गर्मी से हमे बचाने,बादल कब जल लायेगा।।
खिड़की से झांके जो सूरज,देता हमको गर्मी है
कड़क हमेशा ही रहता है,थोड़ी भी न नरमी है
रेगिस्तानों में तो देखो,खड़ा सुरक्षाकर्मी है
स्वेद बदन को सूखा कर दे, कब तक वो पल आयेगा
इस गर्मी से हमे बचाने,बादल कब जल लायेगा।।
जीव जन्तु सब विह्वल से हैं, नही कहीं उल्लास है
श्वासें लम्बी लम्बी लेते,मानों कम ही श्वास है
सूर्य ताप इतना बढ़ जाता, मानों सूरज पास है
शिथिल पड़ा है जीवन,जाने फिर कब वो बल आयेगा
इस गर्मी से हमे बचाने,बादल कब जल लायेगा।।
इस गर्मी में देखो सूरज,बांटता कितना पसीना है
हलक़ सूख जाती लगता कि,अब तो मुश्किल जीना है
नल से न निकले अब जल,तो सोचो फिर क्या पीना है
पीना मुश्किल हुआ है देखो,नल से कब जल आयेगा
इस गर्मी से हमे बचाने,बादल कब जल लायेगा।।
जलती धरती पर रहने वाले,कीड़े कैसे जीतें हैं
तिनका तिनका जोड़़ घोसला, पक्षी कैसे सीते है
रखा छतों पर गर्म है पानी,पक्षी कैसे पीते है
दानें चुगनें ना जाने कब, फिर पक्षी दल आयेगा
इस गर्मी से हमे बचाने,बादल कब जल लायेगा।।
निजी स्वार्थ में अन्धे हो, इन्सान बगीचे काट दिया
तेरा मेरा करके वो ‘एहसास’ ही सबका बांट दिया
वशीभूत हो लालच के, वो ताल, कुएं सब पाट दिया
अब तो अपनी करनी का,निश्चित ही वो फल जायेगा
इस गर्मी से हमे बचाने,बादल कब जल लायेगा।।
#अजय एहसास
परिचय : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सुलेमपुर परसावां (जिला आम्बेडकर नगर) में अजय एहसास रहते हैं। आपका कार्यस्थल आम्बेडकर नगर ही है। निजी विद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ हिन्दी भाषा के विकास एवं हिन्दी साहित्य के प्रति आप समर्पित हैं।
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