प्रहार रोज संस्कृति पर,होता रहा है रोज।
बैठ न चुप्पी साधकर,शीघ्र ईलाज खोज॥
आज ‘रक्षा बंधन’,भारत जन-मन संस्कार।
प्रण ठानें सहोदर, रोकन बहन पर प्रहार॥
भागो न दूर बहन से,वह संस्कृति की शान।
वह खतरे से रो रही,दिला उसे सम्मान॥
तजें मौन बहन पर,हम होतें न हो अभाग।
उठा कठोर साधन,कायर बनकर मत भाग॥
आज गली में पब खुली,खाल प्रगति का नाम।
भारत न हो असुर सरग,यह राम किसन धाम॥
शीघ्र असुर संहार कर,बनावै राम राज।
जग संस्कृति माँ भरत बन,फिर शोभित हो आज॥
परिचय : सुरेश जी पत्तार ‘सौरभ’ बागलकोट (कर्नाटक) में रहते हैं। शिक्षा एमए,बीएड,एम.फिल. के साथ ही पी .एचडी.भी है। आप मूलतः हिन्दी के अध्यापक हैं और कविता-कहानी लिखना शौक है। नागार्जुन के काव्य में शोषित वर्ग सहित कई पत्रिकाओं में आलेख,कविताएँ,कहानी प्रकाशित हैं।