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मिला एक गुलाब
क़िताब के पन्नों में
तेरे ख़त के साथ……
कुछ मुरझाया सा
और कुछ बेरँग सा
तेरी याद के साथ…….
महसूस हुआ इक स्पर्श
कुछ पहचाना सा
तेरे अहसास के साथ……
इक स्पन्दन से
दिल हुआ बाग़ बाग़
तेरे आगाज़ के साथ…..
धड़कनों ने सुनी
इक अनसुनी आहट
तेरे आभास के साथ…..
आज खोलोगे फिर किताब
और चूम लोगे गुलाब
इक गुनगुनाहट के साथ……
इतने बरस बाद
जीत जाएगा मेरा विश्वास
तेरे विश्वास के साथ……
रजनी रामदेव
न्यूदिल्ली
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