सीमेंट के जंगल

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Manilal
कौन कहता है?
हमने नाता तोड़ लिया
जंगल से,
क्या हमें नहीं पता कि,
जंगल में मंगल होता है।
बेशक!
हमारे स्वभाव से न झलके,
अपनी जंगलियत।
पर कई बार उजागर किए,
कर्मों से पशुता की निशानी।
जंगल का राजा
जो भी हो,
पर आज हमारी ही हुकूमत है।
आखिर हमारे रहते,
किसी हिंसक पशु की
जंगल को क्यूँ जरूरत है?
गांव को नजरअंदाज करके
हमने जंगल की सफाई की है।
जल की बूंदें न दे सके तो क्या?
आग की लपटें तो दी है।
पेड़ों से इतना प्यार है कि,
उसके अंग के बने सोफे पलंग से,
घर का कोना-कोना सजाया है।
जंगल का शिला तोड़-तोड़ के,
एक नया जंगल सजाया है;
जहाँ ऊँची-ऊँची इमारतें है।
धरा की झुर्रियों-सी सड़कें
दीमक-सी लगती
विशाल जन सैलाब
उर्वरा भू को बंध्य बनाती
‘सीमेंट के जंगल।’
(यह कविता मानव जाति द्वारा जंगल के संसाधन पर शोषण को चरितार्थ करती हुई व्यंग्य करके लिखी गई है।)
                                                            #मनीलाल पटेल(मनीभाई)
परिचय:मनीलाल पटेल(मनीभाई) का निवास छत्तीसगढ़ के जिला-महासमुंद स्थित ग्राम-भौंरादादर,पोस्ट-लंबर तहसील-बसना में है। आप अधिकांशत कविताएँ लिखते हैं।

matruadmin

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