महिला दिवस आते ही पुरुषों का घड़ियाली आंसू बहाना शुरू हो जाता है। कविता,लेख,कहानी आदि-आदि द्वारा स्त्रियों के लिए सम्मान की भावना अचानक तूफान बन कहाँ से टूट पड़ती है कि, नारी तुम देवी हो,तुम सृष्टि की रचयिता हो, तुम्हारे बगैर कुछ भी सम्भव नहीं है वगैरह-वगैरह…। समझ नहीं आता कि, जो पुरुष बिना अपनी मेहरबानी के स्त्री को दो कदम भी आगे बढ़ते नहीं देख सकता,वह आज इतना विनम्र व् शुभचिंतक कैसे हो गया? गिरगिटों ने भी रंग बदलने वाला हुनर शायद इन्हीं से पाया हो? खैर, हम स्त्रियां भी कुछ कम नहीं हैं,नारी सशक्तिकरण के नाम पर शुरु जो हो जाती हैं। कभी कहेंगी कि,प्रेम मत करो,किसी पुरूष की दया की मोहताज मत बनो,हम पुरुषों से कम नहीं हैं..शक्ति स्वरूपा हैं इत्यादि-इत्यादि..। यह सत्य है कि, हमें स्त्री स्वतंत्रता के लिए सकारात्मक विचार लाने होंगे व उसके लिए कार्य भी करना होगा,ताकि वह शिक्षित व स्वावलंबी हो सके,परंतु इस प्रकार की सोंच क्या हममें पुरुषों के प्रति प्रतिस्पर्धा से अधिक घृणा नहीं पैदा कर रही है ? क्या हम अनजाने में ही अपनी नई पीढ़ियों के हृदय में पुरुषों के प्रति नफरत का बीज नहीं बो रहे हैं? आज बहुत-सी लड़कियां पुरुषों ही अपना जन्मजात शत्रु मानने लगी हैं,हम अपनी बच्चियों को सक्षम तो बना रहे हैं,साथ ही क्रूर भी। एक पुरूष भाई,पिता,बेटा और पति भी होता है। जब स्त्री का पुरुष के प्रति व पुरुष का स्त्री का पुरुष के प्रति आकर्षण ही खत्म हो जाएगा,तब तो सृष्टि स्वयं ही थम जाएगी,हर एक विवाहित जोड़ा कोर्ट की दहलीज पर खड़ा मिलेगा। लगभग 60-70 प्रतिशत अविवाहित लड़कियां तमाम तरह के स्त्री रोगों से ग्रसित हो रही हैं, और चिकित्सक सिर्फ एक ही वजह बताते हैं-तनाव और पुरूष हार्मोन्स की अधिकता,अर्थात-दृढ़ता,क्रोध, अधिक महत्वाकांक्षा,उग्रता इत्यादि इन कठोर गुणों का स्त्रियों में अधिक हो जाना,जिसे पुरुष गुणों की पहचान माना जाता है। मुक्तता की चाह में हम भूल ही जाते हैं कि, क्या हम इस ईश्वर प्रदत्त स्त्री देह से इस जीवन में मुक्त हो पाएंगे? इस तरह से हम अपनी ही संतानों को स्वावलम्बी तो बना देते हैं, पर बहुत कुछ छीन भी लेते हैं जो उन्हें स्त्री होने की पहचान दिलाता है। मेरा मानना है कि, हम कोई भी चीज़ लड़कर नहीं जीत सकते हैं, उसके लिए प्रेम ही सशक्त हथियार है-चाहे वह किसी प्रकार की भी स्वतंत्रता ही क्यों न हो,जरूरत है अपने अधिकार के प्रति सजग रहने की, जिसकी शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी चाहिए।
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शब्द शब्द में ब्रह्म हो ,शब्द शब्द में हो सार
यथार्थ एवम् समाजिक लेख बधाई आपको
समाज मे बढ़ते असन्तुल के कारण को बड़ी सूक्ष्मता और प्रभावशाली तरिके से उभारा आपने,,,संतुष्टि मिली,,,परन्तु लेख मे वर्णित कारणों को आत्मसात कर जागरूकता लाना अतिआवश्यक है।