बदलते प्रतिरुप

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alka
चले थे..साथ हम…
नन्हें-नन्हें से क़दम।
साथ ही खुशियाँ भी,
निच्छ्ल था तन-मन..
वह निराला था बचपन॥
समय में ऐसे आँजे,
चूर हुए सपने साँझे।
बड़ा हुआ कद साया,
अहं आकर टकराया।
अंतर्मन को उलझाया,
राहें विषम..समझाया॥
छतरी अपनी अलग हुई,
भिगो भीतर मलिन हुई।
कीचड़-सी बरसात हुई,
सुथरी तस्वीर खराब हुई॥
उबर न पाए प्रतिवाद हुए,
घात प्रतिघात संवाद हुए।
जीवन घाव अलगाव हुए,
बद ये भव फ़िर बदनाम हुए॥
भूल निष्पाप वह भाव सारे,
छल प्रपंच सरि-सार बहे।
जीवंत कटु ये छल-छार हुए,
गिर गर्त विकट अंधियार हुए॥
(बचपन के मासूम भाव समय के अंतराल में किस प्रकार बदल जाते हैं, और क्या हश्र हो जाता है हमारा…बस यही बात इसमें प्रस्तुत की गई है।)

                                                                  #अलका गुप्ता ‘भारती’

परिचय : श्रीमती अलका गुप्ता ‘भारती’ मेरठ (उ.प्र.) में रहती हैं। काव्यरस-सब रस या मिश्रण आपकी खूबी है।आप गृहिणी हैं और रुचि अच्छा साहित्य पढ़ने की है। शौकिया तौर पर या कहें स्वांत सुखाय हेतु कुछ लिखते रहने का प्रयास हमेशा बना रहता है। आपके पिता राजेश्वर प्रसाद गुप्ता शाहजहाँपुर में एक प्रतिष्ठित एडवोकेट थे तो माता श्रीमति लक्ष्मी गुप्ता समाजसेविका एवं आर्य समाजी विचारक प्रवक्ता हैं। पति अनिल गुप्ता व्यवसायी हैं। १९६२ में शाहजहाँपुर में ही आपका जन्म और वहीं शिक्षा ली है। एमए (हिन्दी और अर्थशास्त्र) एवं बीएड किया है। तमाम पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख एवं कविताएँ प्रकाशित होते हैं। पुस्तक-कस्तूरी कंचन,पुष्प गंधा नामक संकलन काव्य आदि प्रकाशित है। स्थानीय, क्षेत्रिय एवं साहित्यिक समूह से भी आपको सम्मान प्राप्त होते रहे हैं। ब्लॉग और फेस बुक सहित स्वतंत्र लेखन में आप सक्रिय हैं।

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