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ढल गया चाँद रात को लेकर,
नींद न आई किसी बात को लेकर।
कई सवाल लड़ते रहे यूँ आपस में,
हम चले आए अपने जज्बात को लेकर।
कसकर मुठ्ठी में कुछ ख्वाब छिपाए थे,
बैठे रहे रात भर डरे हाथ को लेकर।
हँसी चेहरे पर रखो भले ही झूठी हो,
कब तक रोओगे ‘अमित’ हालात को लेकर।
#अमित शुक्ला
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