निशानी बाप-दादा की जो गिरवी रखने जाएगा,
वो अपना आतिश-ए-लाचारगी में दिल जलाएगाl
पढ़े-लिखों का है ये शहर वापस लौट जा प्यारे,
यहाँ एहसास की बोली कोई न जान पाएगाl
वो आँखें बंद करके भी मेरे जजबात पढ़ लेगा,
मेरा कमअक्ल दिल कैसे हजारों गम छुपाएगाl
यहाँ अरमान भी लोगों के अकसर लूटे जाते हैं,
तू इस दुनिया में जीकर,सोच ले क्या और पाएगा।
नहीं डर आग का होता,नहीं जलने का सोने को,
निखरता ही मैं जाऊँगा तू जितना आजमाएगाl
हवा के दौर पर चलने लगा झोक-ए-सुखन मेरा,
निशाँ फिर बाद मेरे कौन इसका ढूंढ पाएगाl
चराग-ए-उम्र हूँ ‘महबूब’,बुझ के जल न पाउँगा,
नहीं हूँ ‘बल्ब’,के हर-रोज मुझको तू जलाएगाl
#महबूब सोनालिया
परिचय : आपका निवास गुजरात के भावनगर में हैl आप लेखन में `महबूब` उपनाम उपयोग करते हैंl आपको गजल लिखने का ज्यादा शौक हैl १९८७ में आपका जन्म हुआ हैl