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सुबह के सूरज से,
आँख मिलाकर की बातें
दोपहर के सूरज से
नहीं कर सकते बातें,
सबने उसे सिर चढ़ा रखाl
अभिमानी इंसान
दिया भी दिखा नहीं सकते,
क्योंकि,सूरज ने
उनकी परछाई का कद
कर रखा है छोटाl
हर रोज की तरह,
होती विदाई सूरज की
सूर्यास्त होता ये भ्रम
पाले हुए है वर्षों सेl
पृथ्वी के झूले में
ऋतु चक्र का आनन्द लिए,
घूमते जा रहे
सूर्योदय-सूर्यास्त की राह
मृगतृष्णा मेंl
सूरज तो आज भी सूरज है,
जो चला रहा ब्रहामंड
सूरज से ही जग जीवित
पंचतत्व अधूराl
अर्थ-महत्व ग्रहण का,
सब जानते तो हैं
तभी तो करते हैं
पावन नदियों में स्नानl
हे सूरज,
धरा के लिए अपनी तपिश को
जरा कम कर लेनाl
डर लगता है,
कही तपिश से सूख न जाए
पावन नदियाँ और धरा से वृक्षll
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।
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Sat Jun 24 , 2017
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