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मैं भी तुम्हारी देह में,
मोगरे और गुलाब की खुशबू ढूंढ़ना चाहता हूँ,
जैसा दूसरों को महसूस होता है।
तुम्हारी हँसी से,
झरते हरसिंगार देखना चाहता हूँ,
जैसा दूसरे कहते हैं।
तुम्हारी चाल में,
हिरणी की कुलांचों को समझना चाहता हूँ।
और आवाज…?
आवाज कोयल सी सुनना चाहता हूँ।
सभी कहते हैं,
प्रेम में ऐसा ही होता है।
क्या सच में प्रेम में ऐसा होता है?
पर हमें ऐसा क्यों नहीं लगता?
क्यों नहीं हमारी देहगंध फूलों सी हुई?
तुम्हारी चाल भी हिरणी सी नहीं ???
हंसने से तुम्हारे
हरसिंगार भी नहीं झरे!!!
मैं भी तुम्हें किसी राजकुमार सा नहीं लगता???
पर तुम्हारा पास आना मुझे अच्छा लगता है।
और दूर जाने पर कुछ खाली-खाली सा महसूस होता है।
हंसी से हरसिंगार तो नहीं झरे कभी,
पर तुम्हारा हंसना मेरे हृदय में भी हास भर देता है।
और तुम्हारे दुखी होने से….
मेरा भी मन रोने को करता है।
और हां! तुमने तो चांद-तारे भी नहीं मांगे?
पता नहीं प्रेम होने पर औरों में पेड़- पौधों (हरसिंगार) और पशुओं(हिरण) वाला बदलाव कैसे आ जाता है? और उन्हे यह कैसे भा जाता है?
पर मुझे तुम ऐसे ही अच्छी लगती हो।
न हिरणी, न हर सिंगार….
बस सहज प्यार…
जिसमें तुम मुझे और मैं तुम्हें समझ सकूं।
तुम मेरे हृदय से हंस सको।
और मैं तुम्हारी आंखों से रो सकूं।
#अमिताभ प्रियदर्शी
परिचय:अमिताभ प्रियदर्शी की जन्मतिथि-५ दिसम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-खलारी(रांची) है। वर्तमान में आपका निवास रांची (झारखंड) में कांके रोड पर है। शिक्षा-एमए (भूगोल) और पत्रकारिता में स्नातक है, जबकि कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता है। आपने कई राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक अखबारों में कार्य किया है। दो अखबार में सम्पादक भी रहे हैं। एक मासिक पत्रिका के प्रकाशन से जुड़े हुए हैं,तो आकाशवाणी रांची से समाचार वाचन एवं उद्घोषक के रुप में भी जुड़ाव है। लेखन में आपकी विधा कविता ही है।
सम्मान के रुप में गंगाप्रसाद कौशल पुरस्कार और कादमबिनी क्लब से पुरस्कृत हैं। ब्लाॅग पर लिखते हैं तो,विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा रेडियो से भी रचनाएं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज को कुछ देना है
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