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प्रभात का प्रकाश
विस्मित करता हर रोज,
नई ऊर्जा का संचार
खुल रहे हैं फिर उस
देहरी के द्वार।
जाना है हर रोज नियमित
नई दिनचर्या से रोज
सुनहरे पलों को भूलकर
करना है अब कार्य हर रोज।
बहुत बीते दिन अपनों के संग,
अब जाना है उसी देहरी की ओर..
जहाँ अनुभव,शब्द-ज्ञान भण्डार मिले
नई पीढ़ी को सुन्दर,संचित आधार मिले।
नई प्रेरणा,नव तेज, उल्लास हर रोज खिले,
शब्दों की ऊर्जा से प्रभावित हर नया
मोड़ मिले,
आशीर्वाद बना रहे,स्वजनों और आत्मीय
परिजनों का,
ईश्वर का हर घड़ी सहयोग मिले।
नए सिरे से उज्ज्वल हो ज्ञान मेरा,
परिमार्जित,परिष्कृत हो आयाम मेरा..
गढूं नो कुम्भकार की भाँति हर रोज नया पात्र,
पककर इतना तेजस्वी बने पात्र
हर छोर-हर ओर रोशन हो ‘नाम मेरा’॥
#शालिनी साहू
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।
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