प्रो. देविदास प्रभु…..
बेंगलुरु में जो हिन्दी का विरोध हुआ है,उसका कारण अंग्रेजी पंडितों द्वारा किया जा रहा झूठा प्रचार हैl अंग्रेजी पंडित कहते हैं-`हिन्द राष्ट्र भाषा नहीं है,२२ राजभाषाओं में से एक है,संविधान ने सभी भाषाओं को बराबर का दर्जा दिया है,मगर संविधान के विरुद्ध एक भाषा हिन्दी को बढ़ावा दिया जारहा हैl`
सच्चाई यह है कि,राजभाषा,राष्ट्रभाषा से कहीं ऊपर का स्थान है। संविधान ने केवल हिन्दी को राजभाषा माना है,और उसे अंग्रेजी के स्थान पर लाया गया हैl यूरोपीय देशों में राजभाषा है,अफ्रीका के देशों की भाषाएं राष्ट्रभाषाएँ कहलाती हैं(वे राज भाषाएं नहीं हैं)l
८वीं अनुसूची की भाषाएँ राजभाषाएं नहीं हैं। संविधान के अनुच्छेद ३५१ के अनुसार वे केवल राजभाषा हिन्दी के विकास के लिए सहयोग देने वाली भाषाएं हैं। संविधान में सभी जगह `ऑफिशियल लैंग्वेज` शब्द का ही प्रयोग हुआ है,कहीं `ऑफिशियल लैंग्वेज (प्लूरल)` शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है,इसलिए पाठयक्रम में संविधान के १७वे विभाग को बिना कोई बदलाव के जनता के सामने लाने की कोशिश करनी चाहिए और उसके जरिए अंग्रेजी पंडितों के झूठे प्रचार को बंद करवाना चाहिए।
संविधान सभा में सभी चाहते थे कि,सभी राज्यों में (भाषाओं)हिन्दी को सम्राट (राष्ट्रभाषा)का दर्जा दिया जाए,मगर हमारे अंग्रेजी पंडित कहते हैं कि,सभी राजा है कोई सम्राट नहीं,मगर संविधान का प्रावधान क्या है? एक ही राजा और सम्राट (पूरे देश की राजभाषा) और अन्य भाषाओं को नौकर का दर्जा दिया है। पार्लियामेंट्री कमेटी ऑन ऑफिशियल लैंग्वेज में सभी ८वीं अनुसूची की भाषाओं का प्रतिनधित्व है। वे सभी राजभाषा हिन्दी के विकास के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश करेंगे। हाल ही में इस कमेटी ने राष्ट्रपति को सिफारिश की है।
८वीं अनुसूची में शामिल होने के लिए होड़ लगी हुई है,इसमें शामिल होना किसी भाषा के लिए गर्व की बात नहीं है,बल्कि शर्म की बात ही होगी। ये सब भाषाएं राजभाषा हिन्दी के विकास के लिए सहयोग देंगी! जैसे यूरोप अंग्रेजी की अलग-अलग भाषाओं के शब्द अपनाकर विकसित हुआ है,वैसे ही हिन्दी को भारत के अलग-अलग भाषाओं के शब्दों को अपनाकर राष्ट्रीय राजभाषा बनाना संविधान का मकसद रहा है। जब संविधान को लागू ही नहीं किया गया है और अंग्रेजी को ही राजभाषा के रूप में बरकरार रखा है,तो ८वीं अनुसूची का क्या औचित्य है?
संविधान में संशोधन करके १७वे भाग में अलग सूची बनाकर सब प्रादेशिक राजभाषाओं की एक अलग सूची बनवानी चाहिए।
हिन्दी का विरोध करने वाले संविधान का सहारा न लें,तमिलनाडु के १९६० के हिन्दी विरोधी आन्दोलन में करूणानिधि ने संविधान का १७वे भाग का पन्ना जलाकर विरोध किया था। अंग्रेजी पंडित भी ऐसा जरुर कर सकते हैं,मगर संविधान का झूठा हवाला देकर हिन्दी का विरोध करना बंद करें। हिन्दी का विरोध करने वालों को यह पता होना चाहिए कि,वो संविधान का विरोध कर रहे हैं।
अंग्रेजी पंडित अंग्रेजी को भी भारत की राजभाषा कहते हैं,मगर संविधान ने अंग्रेजी को कहीं राजभाषा नहीं माना है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में भी राजभाषा हिन्दी को लाने का अधिकार पार्लियामेंट्री कमेटी ऑन ऑफिशियल लैंग्वेज को दिया है,वो कभी भी इस बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकती है (आर्टिकल ३४४, २,C)। संविधान के खिलाफ हिन्दी को नहीं,बल्कि अंग्रेजी को देश पर थोपा जा रहा है।
(साभार-वैश्विक हिन्दी सम्मेलन मुंबई)