वाह रे राजनीति! अब शब्द ही नहीं बचे कि जिससे उदाहरण दिया जाए। कुर्सी की चाहत में आज सब कुछ कुर्बान! सत्ता के समीकरण में उलझा हुआ देश पूरी तरह से त्रस्त है। अब बस एक ही कार्य रह गया है वह है समीकरण! यह सत्य है कि समीकरण के फेर में जो भी फिट बैठता है वह दिन दूना रात चौगुना सत्ता की छांव के सहारे बुलंदियों की ओर कदम-ताल करता हुआ तेजी के साथ बढ़ता चला जाता है। यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि सियासत की क्षत्र-छाया में आसानी के साथ प्रत्येक दुःख दूर हो जाते हैं। परन्तु अफसोस, दुर्भाग्यवश यदि सियासत की क्षत्र छाया न हो तो स्थिति ठीक विपरीत हो जाती है। कहीं भी किसी भी प्रकार की सुनवाई नहीं होती है। पीड़ा कितनी भी हो दर्द कितना भी हो परन्तु वह किसी को भी दिखाई नहीं देता। यह बड़ी चिंता का विषय है जो दृश्य उभरकर सामने आ रहा है वह बहुत ही भयावक है। आज क्या हो रहा है प्रत्येक स्थानों पर अपराध बढ़ रहा है जिस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। यह एक ऐसा सवाल है जोकि एक साथ कई सवालों को जन्म देता है। अंकुश न लग पाने का कारण क्या है…? इसे समझने की आवश्यकता है। इस पर चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। इसके पीछे छुपे हुए कारण को खोजने की आवश्यकता है। क्योंकि जिस प्रकार से अपराध हो रहे हैं वह मानव जीवन के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
बहन बेटियां हमारे समाज का मुख्य अंग है हमारे जीवन का मुख्य हिस्सा हैं यह सोचने का विषय है यह समझने का विषय है इस पर सोचने समझने एवं मंथन करने की आवश्यकता है। आज जिन युवाओं को बहन बेटियों की रक्षा के लिए खड़े होना चाहिए आज वही युवा बहन बेटियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है। क्या हमने कभी ऐसे समाज की परिकल्पना की थी…? यह बड़ा सवाल है।
बेटियों के प्रति बढ़ते हुए अपराध ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया। हमारे मानव समाज का एक हिस्सा राक्षस रूपी मानसिकता की ओर तेज गति के साथ बढ़ता हुआ चला जा रहा है इसके पीछे कारण क्या है…? यह सबसे बड़ा प्रश्न है। क्योंकि, महिलाओं एवं बेटियों के प्रति बढ़ते हुए घिनौने अपराध ने जिस प्रकार से अपना राक्षस रूपी चेहरा देश के सामने प्रस्तुत किया है वह अत्यंत दुखद है। इसको रोकना आज समाज के लिए बहुत बड़ी चुनौती है! क्योंकि, कठोर से कठोर कानून एवं नियम बना लेने से अपराध नहीं रुक सकता इसका मुख्य कारण यह है कि कानून एवं नियम की परिभाषा एवं कायदे कागज के पन्नों पर ही अंकित होते हैं न कि अपराधियों की मानसिकता पर। अपराधियों की मानसिकता पर कानून का खौफ क्यों नहीं होता यह बड़ा सवाल है…? इस पर चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है। आज बड़े से बड़ा अपराध करने वाले अपराधी बेखौफ क्यों होते जा रहे हैं…? यह बड़ा सवाल है! अपराधियों के अंदर कानून का डर न होना अपने आप में बड़ा सवाल है। आज कानून एवं नियम धरातल पर मजबूती के साथ लागू क्यों नहीं हो पा रहा है…? इसके पीछे क्या कारण है…? यह बड़ा सवाल है। इसके पीछे का मुख्य कारण को खोजने की आवश्यकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसके पीछे किसी भी प्रकार का पक्षपात, जातिवाद, वर्चस्ववाद, अथवा किसी भी प्रकार का भ्रम एवं दबाव तो कार्य नहीं कर रहा क्योंकि आज अपराधी बेखौफ होते जा रहे हैं, यह बड़ा सवाल है! जब तक अपराधियों के पीछे खडे हुए सहयोगी रूपी बड़ी ताकतों को मुख्य दोषी नहीं माना जाएगा तबतक अपराध नहीं रुक सकता। क्योंकि जबतक जड़ो पर मजबूती के साथ प्रहार नहीं होगा तबतक अपराध पर अंकुश लगा पाना असंभव है। क्योंकि अपराधियों का बढ़ता हुआ मनोबल यह स्पषट रूप से संकेत देता है कि इसके पीछे कोई अदृश्य बड़ी ताकतें हैं। क्योंकि बिना सहयोग एवं समर्थन के अपराधियों का मनोबल कदापि नहीं बढ़ सकता। ऐसा प्रत्येक प्रकार के अपराधों में सदैव ही देखा गया है। कि कुछ अदृश्य ताकतें अपने निजी स्वार्थ के लिए पीठ के पीछे खड़ी होती हैं।
हाथरस में जिस प्रकार की घटना हुई है उसने समस्त संसार को एक बार फिर से कठघरे में खड़ा कर दिया है क्योंकि जिस प्रकार से एक बेटी के साथ क्रूर एवं बर्बर तथा घिनौना अपराध किया गया वह अपने आपमें बहुत कुछ कह रहा है। यह एक ऐसा जघन्य अपराध है जोकि अपने चारों ओर सवाल बिखेर रहा है। सबसे पहले शासन एवं प्रशासन पर नजर जाती है कि इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद शासन एवं प्रशासन कहां खड़ा था…? धरातल पर कानून रूपी देवता कहाँ खड़े थे…? कानून के रखवालों ने अपनी जिम्मेदारियों का किस प्रकार से निर्वहन किया। यह बड़े सवाल हैं। कानून के रखवालों ने पीड़ित परिवार का किस प्रकार से साथ दिया…? क्योंकि जिस प्रकार के तथ्य सामने आ रहे हैं वह चौंकाने वाले हैं! पीड़िता को तुरंत सर्वोत्तम उपचार की आवश्यकता थी परन्तु साधारण उपचार से ही कार्य को टरकाया गया। इस प्रकार की हीला-हवाली के पीछे का कारण क्या है…? ऐसी कौन सी मजबूरी एवं ऐसा कौन सा दबाव था जिस कारण जिम्मेदारों ने मामले को गम्भीरता से नहीं लिया।
जिस प्रकार से एक के बाद दूसरे अपराध को अंजाम दिया जा रहा है यह बहुत ही चिंता का विषय है! निर्भया कांड की आवाज अभी धूमिल नहीं होने पाई थी कि हाथरस काण्ड ने पूरे समाज को एक बार फिर से झकझोर कर रख दिया है। हाथरस के साथ-साथ बलिया का कांड भी अपराधिक मानसिकता के मनोबल पर सवालिया निशान खड़े करता है। अपराधियों का इस प्रकार से बढ़ता हुआ मनोबल समस्त समाज को चैलेंज कर रहा है। ऐसा क्यों है…? इस बढ़ते हुए मनोबल के पीछे खड़े इनके मददगार कौन हैं…? इस बिन्दु पर कार्य करना बहुत ज़रूरी है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक।
(सज्जाद हैदर)