सावन भू तल मेघ गिरे जल, दृश्य अलौकिक नैनन आगे।
प्यार ढरे वसुधा मधु आँचल, नेह झड़ी धरती रस जागे।
श्याम घटा बरसे मन भावन, संग बयार लुभावन भागे।
अंबर नेह भरे चित पावन, मुग्ध धरा वधु लज्जित लागे।
बुद्धि प्रभा बन देख रही तम, छूट रहा अब तामस ऐसे।
मेघ विशाल जल डोल रहा नभ, फैल रहा मृदु सावन जैसे।
भीतर अंचल में बहता मधु, चेतन जीवन का रस वैसे।
नेह झरे अवलंबन अंबर, पाश विशेष धरा मिल कैसे।
सावन में नव भोर भरी मधु, जोड़ रही नवनीत कहानी।
लोल लता मृदु सुन्दर चंचल, डोल रही रस में अनजानी।
भाव तरंग मनोहर मंगल, झूम रही प्रिय को पहचानी।
नींद खुली नव धार अलौकिक, टूट रही अविराम विरानी।
#छगन लाल गर्ग ‘विज्ञ’,
सिरोही, राजस्थान