रिमझिम–रिमझिम बरसता पानी
रिमझिम–रिमझिम पानी की बूंदें,
देखो कितनी उन्मादित करतीं।
नयी–नयी कोंपलों को देखो
मानो सीपों से भर देतीं।
मधुवन की हरियाली देखो,
गोरी के सजीले नयनो को देखो।
मदमस्त मुखड़े की शौहरत को देखो
बलखाती–सी ज़ुल्फ़ों को देखो।
घूंघट में पग डोलते हुए,
शर्माती हुई, लजाती हुई, आती हुई गोरी को देखो।
हरियाली में छिपी सौम्यता को देखो।
हरी–हरी घास से सजी वसुन्धरा को देखो,
पुष्पों पर लहराते, मतवाले भंवरों को देखो,
ऐसा सौन्दर्य देखो, कहीं और न देखो।
इस सौन्दर्यतल मे समाविष्ट हो जाओ,
गोरी की चाल को देखो।
अश्कों में झलकते हुए प्यार को देखो।
अलसाये हुए नयनो को देखो,
मदमाती मुस्कान को देखो।
प्रकृति की अनुपम कृतियों को देखो,
उपरोक्त दृश्य कह रहे पावस को देखो।
हर ॠतु में बदलते हुए प्रकृति के स्वरूपों को देखो।
#श्रीमती प्रेम मंगल
राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य
मातृभाषा उन्नयन संस्थान, भारत