मैं हिंदी हूँ l
देश की बिंदी हूँ l
मेरा जन्म विरोधों में हुआ है l
जन्म से ही मारने का जतन हुआ है l
मैं तुलसी की बिरवा की भाँति –
हर भारतीय के घर और जुबां पर बसती रही हूँ l
स्वर और व्यंजन मेरे दो संतान हैं,
जिनसे मेरी पहचान है l
निज घर परायेपन का दंश मिला है l
यूँ तो मैं राजभाषा हूँ
पर साथ सौतन अंग्रेजी खड़ी है l
आम की भाषा बन संपर्क भाषा बनी हूँ l
ख़ास की भाषा न होने का दंश
सदा भुगतना पड़ा है l
प्राचीन और नवीन भाषा की कड़ी हूँ l
वैज्ञानिक हूँ, तकनीक को अभिव्यक्त करती हूँ l
काव्य और साहित्य की भाषा हूँ l
अलंकार, रस, छंद में बहती हूँ l
भाव और ध्वनियों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति हूँ l
देशी – विदेशी भाषाओं को समाहित किए हूँ l
अपनों की मानसिकता के कारण
अपने घर में अपमानित होती हूँ l
मेरे अपने मेरी सौतन का साथ देते हैं
और मुझको अपनाने से कतराते हैं l
मेरे अपनों के मन में भय है कि
कहीं मुझे अपनाने से उनका दबदबा न घट जाए l
मान और सम्मान में कमी न आ जाए l
इसलिए हिंदी बोलने वालों को
कभी उच्च दृष्टि से नहीं देखते हैं l
#डॉ मनीला कुमारी
परिचय : झारखंड के सरायकेला खरसावाँ जिले के अंतर्गत हथियाडीह में 14 नवम्बर 1978 ई0 में जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुआ। उच्च शिक्षा डी बी एम एस कदमा गर्ल्स हाई स्कूल से प्राप्त किया और विश्वविद्यालयी शिक्षा जमशेदपुर वीमेन्स कॉलेज से प्राप्त किया। कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्र प्रस्तुत किया ।ज्वलंत समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया विविध पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। प्रतिलिपि और नारायणी साहित्यिक संस्था से जुड़ी हुई हैं। हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला की जानकारी रखने वाली सम्प्रति ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में पदस्थापित हैं और वहाँ के छात्र -छात्राओं को हिन्दी की महत्ता और रोजगारोन्मुखता से परिचित कराते हुए हिन्दी के सामर्थ्य से अवगत कराने का कार्य कर रहीं हैं।