पता नहीं क्यूँ…

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kapil jain
पता नहीं क्यूँ,
मन हो रहा है
इस वक़्त
एक सुलगी-सी
कविता लिखने का
कुछ-कुछ मुझ जैसी
मेरे प्यार के जैसी ..
या एक कॉफी हाउस में
एक ग्लास पानी के जैसी
जो मेरे होंठों से लगकर
गुजरी थी ..
तुमसे ही कहीं।
पता नहीं क्यूँ,
मन हो रहा है इस वक़्त
एक लाल रंग के सूट
में तुम्हें देखने का
खारे पानी के जैसी ..
नमकीन स्वाद वाली
जिसे पहने देख कभी
मेरा दिल किया था
तुम्हें गले लगाने का,
तब शायद तुम्हारे गर्दन
और कांधे पर ठहरे
उस काले तिल को
छू पाता मैं,
अपनी सुलगी सांसों से
ख़त्म कर पाता मैं
जिंदा रहने की
ख्वाहिश तुममें ..
कहीं
जगा पाता मैं
और खुद भी
जी पाती तुम
उम्र भर के लिए
बिना सुलगे ..
बिना बिखरे…।
                                                                                   #कपिल कुमार जैन
परिचय | कपिल कुमार जैन का जन्म १९८६ में  टोडारायसिंह ( टोंक) में हुआ है। वर्तमान में आप बाजार न. 2 भोपालगंज (भीलवाड़ा,राजस्थान) में बसे हुए हैं। बी.कॉम.(अजमेर) की पढ़ाई के बाद आपका ग्रेन मर्चेन्ट एण्ड कमीशन एजेन्ट का व्यवसाय है। आप मूल रुप से काव्य लेखन करते हैं। प्रकाशित संग्रह में  विरह गीतिका,धूप के रंग, फिर खिली धूप,काव्य सकंलन आदि हैं।अंजुरी, पावनी,निर्झरिका काव्य संकलन भी निकले हैं तो पुष्पगन्धा भी है।

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