जल है तो जन है…

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hemendra

जल हमें प्रकृति से विरासत में मिला एक अमूल्य संसाधन है। यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले समस्त प्राणियों तथा पादपों के जीवन का मुख्य आधार है,इसीलिए जल को जीवन कहा गया है। जहॉं जीवन है वहॉं जल तथा वायु की आवश्यकता को कदापि नकारा नहीं जा सकता है। पेड़-पौधे,जीव-जन्तु आदि सभी सजीव हैं, सजीवों को जीवित रहने के लिए जल एंव वायु की आवश्यकता होती है,क्योंकि जल है तो जन है। मानव की दिनचर्या जल पर ही निर्भर है। अलबत्ता,जीवन जीने के ढंग में जैसे-जैसे परिवर्तन आ रहा है,वैसे-वैसे पानी की खपत बढ़ती जा रही है। यदि इसके अपव्यय को नहीं रोका गया तो,आगामी कुछ ही वर्षो में भयानक जल संकट से गुजरना पड़ेगा। अतः बचत के समस्त उपाय किए जाने चाहिए।

बहरहाल,हमारी जीवनदायिनी नदियां खुद अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहीं हैं, तमाम शोधों-अध्ययनों के खुलासे के बाद भी हम उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे,उल्टे उन्हें और गंदा करते चले जा रहे हैं। नतीजतन आज नदियों का जल आचमन लायक तक नहीं हैं, कमोबेश नदियों के अस्तित्व के साथ उनके उद्वगम से ही खिलवाड़  हो रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि, देश के ९०० से अधिक शहरों और कस्बों का ७०  फीसद गंदा पानी पेयजल की प्रमुख स्त्रोत नदियों में बिना शोधन के छोड़ दिया जाता है,नदियों को प्रदूषित करने में दिनों-दिन बढ़ते उद्योग प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। प्रदूषण की मार झेलती देश की ७० फीसद नदियां मरने की  कगार पर हैं। कहीं ये गर्मी का मौसम आते-आते दम तोड़ देती हैं,तो कहीं नाले का रूप धारण कर लेती हैं। शहरों में तो गंदी नाली व कचरे की मार से लथपथ होकर अपने अस्त्तिव से विलुप्त हो रही हैं।

अलबत्ता,पृथ्वी के लगभग ७०  प्रतिशत भाग में जल है। इस जल का लगभग ९७ प्रतिशत भाग सागरों एंव महासागरों में स्थित है,जो खारा है अर्थात पीने योग्य नहीं हैं। पीने योग्य जल केवल ३ प्रतिशत ही हैl इसमें से 2 प्रतिशत जल पृथ्वी पर बर्फ के रूप में जमा है। शेष १ फीसदी जल का १/३ भाग भूतल पर नदी, तालाब तथा २/३  भाग भूमिगत जल कुएँ, हैण्ड पम्प,नलकूप आदि में है। सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में भूमिगत जल होना चाहिए और भूमिगत जल होने के लिए आवश्यक है अच्छी वर्षा तथा वर्षा के जल का संग्रहीकरण। वर्षा के जल के सही संग्रहण से जल स्तर में वृद्धि होगी। यदि इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया तो भूमिगत जल का स्तर गिरता ही जाएगा।

इस तारतम्य में अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने क्या खूब कहा था-विहस्की पीने के लिए और पानी लड़ने के लिए `स्तुत्य, देश का कृषि प्रधान जिला बालाघाट जल संचय और वर्षा की बाहुल्यता का सबसे अच्छा उदाहरण है। प्रथम यहॉं की कृषि भूमि प्रमुखतः मेढ़  धारित है,जहॉं फसल की पैदावार में उपयोगी जल दीर्घ अवधि तक जमीन में संचित रहने से जल भूतल में संग्रहित होते रहता हैl यह जल स्तर  वृद्धि की सर्वोचित विधि है। वहीं दूसरे स्थानों में इस स्वरूप की मेढ़ युक्त भूमि प्रायः उपलब्ध नहीं होती,जो जल असंचय का माध्यम है। द्वितीय यहॉं वृक्षों के प्रति महत्व और आस्था प्रबल है,क्योंकि वनोपज जीवकोपार्जन का एक साधन भी है। सबसे विशेष परम्परा यानी अंतिम संस्कार क्रिया लकड़ी को जलाकर नहीं,अपितु गोबर के कंडे (उपले) को जलाकर सम्पन्न होती है,साथ ही भोजन बनाने में इनका उपयोग जंगल की रोकथाम स्वरूप वनॉंच्छिदता बनी हुई है। यही वन प्रधानता औसतन अधिक वर्षा का स्त्रोत अनुकरणीय है……….l

अंततः आज नदी,कुऑं,जलाशय,नल हैं ,पर जल नहीं ऐसा क्यों? इसके कार्य- कारण हम ही हैं। अब जल रूपी जीवन को बचाने का एकमेव विकल्प है,अधिकाधिक लघु बॉंध,तालाब,चैक डेम,रेन-रूफ वाटर हारवेस्टिंग सिस्टम का निर्माण व उपयोग और प्रदूषित जल के शोधन के उपायों को अपनाना होगा। आगे बढ़कर वन का समुचित संरक्षण व संवर्धन और जल का संचय करना पड़ेगाl  अभिभूत,हम सभी आज संकल्प लें कि,पानी का दुरूपयोग न करते हुए, गांव का पानी गांव में,खेत का पानी खेत में रखेंगे। यथार्थ इंसान पानी बना तो नहीं सकता,पर बचा जरूर सकता है। आखिर में जल है तो जन है,आज हम जल बचाएंगे,तो कल जल हमें बचाएगा……।

                 #हेमेन्द्र क्षीरसागर

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