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नीला गगन, सुंदर पवन,
देखो घटा सुनहरी छाई है।
चहक रहे हैं पंक्षी चहुँ ओर,
प्रातः वंदन की बेला आई है।।
कैसी सुंदर सी आई है बेला,
किरण आँचल में प्रकाश लाई है।
देख गगन की छटा मनोरम,
सबके होंठों पर मुस्कान आई है।।
मद मस्त पवन झूमे मस्ती में ,
धरा पर देखो बहार आई है।
नीले गगन में देखो कैसी,
सुंदर सुनहरी घटा छाई है।।
रचयिता
नवनीत शुक्ल (शिक्षक)
रायबरेली (उत्तर प्रदेश)
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