(विश्व जल दिवस पर चिंता करता लेख)
दो दशक पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने की परिकल्पना की थी तब उनकी सोच रही होगी कि इस आयोजन के बहाने दुनिया जागेगी और एक पानीदार समाज का निर्माण होगा लेकिन जब हम पलटकर देखते हैं कि आंखों से पानी उतर रहा है और गला सूखता चला जा रहा है। यह आज का सच है। हमारे समय के लेखक एवं चिंतक अनुपम मिश्र को पानीदार समाज की चिंता करते हुए हम स्मरण कर लेते हैं। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के बहाने हम उन सुनहरे दिनों को याद कर लेते हैं लेकिन यह सब किताबी बातें रह गयी हैं। तालाब और पोखर को पाटकर बहुमंजिला इमारतें इठला रही हैं और हम बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। कहा जाता रहा है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा लेकिन जो हालात बन रहे हैं, उसे यह प्रतीत होता है कि बिना युद्ध किये ही हमने अपने मरने की तैयारी कर ली है।
अलग-अलग स्रोतों से जो जानकारी हासिल होती है, वह ना केवल पानी के बर्बादी की कहानी कहती है बल्कि हमारे भविष्य के सामने भी सवालिया निशान खड़ा करती है। जैसे-
● मुंबई में प्रतिदिन वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है।
● दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण रोज 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है।
● पानीजन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
● यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में करीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।
● बाथ टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 पानी लीटर खर्च होता है।
● भारतीय स्त्रियां पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती हैं।
● विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।
● प्रति वर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
●पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं।
● भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है। वहीं इजऱाइल में औसतन मात्र 10 सेंटीमीटर वर्षा होती है, इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है।
यह तथ्य और आंकड़ें भविष्य के पानी के संकट के प्रति हमारी आंखें खोलती हैं। एक नजर इन आंकड़ों पर भी डाल लें कि हमारी पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है, शेष 1.5 प्रतिशत पानी बर्फ के रूप में धु्रव प्रदेशों में है। इसमें से बचा एक प्रतिशत पानी नदी, सरोवर, कुओं, झरनों और झीलों में है जो पीने के लायक है। इस एक प्रतिशत पानी का 60वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40वां हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ-सफाई में खर्च करते हैं।
समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है जलसंकट के साथ आँखों में बचा पानी भी उतरने लगे। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है। पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। विश्व में और विशेष रुप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले ख़तरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और पानी के महत्व व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी देते हैं।
नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं वहीं कल कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में जब तक कानून में सख्ती नहीं बरती जाती, अधिक से अधिक लोगों को दूषित पानी पीने का समय आ सकता है।
क पृथ्वी पर पैदा होने वाली सभी वनस्पतियाँ से हमें पानी मिलता है।
क आलू में और अनन्नास में 80 प्रतिशत और टमाटर में 15 प्रतिशत पानी है।
क पीने के लिए मानव को प्रतिदिन 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए।
क 1 लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है।
क एक किलो गेहूँ उगाने के लिए 1 हजार लीटर और एक किलो चावल उगाने के लिए 4 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।
जल संरक्षण को लेकर समय-समय पर सेमीनार और वर्कशॉप होते हैं लेकिन आयोजन के साथ ही सारी बातें बिसरा दी जाती हैं। कोविड-19 के बाद पूरे देश में बोतलबंद पानी का जो चलन शुरू हुआ है, वह एक भयानक खतरे का संकेत है। एक तरफ तो हम पर्यावरण को प्लास्टिक की बोतलों से तबाह करने पर उतारू हैं तो दूसरी तरफ दो घूंट पानी पीकर पूरा बोतल भर पानी छोड़ दिया जाता है। आधा गिलास पानी का कांसेप्ट लगभग तिरोहित होता जा रहा है। इस दिशा में कोई बोलने वाला नहीं है और लगता है कि इनके कानों में खतरे की आहट पहुंची नहीं है।
पिछले दिनों भोपाल में आयोजित दो दिवसीय जल दृष्टि 2047 सम्मेलन में केन्द्रिय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि यह आयोजन पानी को बचाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि भारत को 2047 तक अनुमानित जल तनाव की स्थिति के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए। वही 2047 तक पानी की आवश्यकता का आकलन हमारे पास उपलब्ध पानी की कुल मात्रा से अधिक होगा। आज की तारीख में पानी का संचयन योग्य घटक लगभग 1,180 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है और हमारी आवश्यकता 880 बीसीएम है। लेकिन 2047 तक मांग जा रही है। अब इन्हें कौन बताए कि यह आदर्श स्थिति कागज पर है और दूर-दराज गांवों में जाकर स्थिति का जायजा लिया जाए तो 2047 की प्लानिंग धरा रह जाएगा। हालांकि पीएम मोदी ने ग्राम पंचायतों से अगले पांच वर्षों के लिए एक कार्य योजना तैयार करने का भी आग्रह किया है ताकि जल आपूर्ति से लेकर स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन तक के रोडमैप पर विचार किया जा सके। उन्होंने कहा कि पंचायतों को जल जीवन मिशन का नेतृत्व करना चाहिए ताकि सभी ग्रामीण परिवारों को नल से पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध हो सके। सीएम शिवराज ने कहा कि जल ही जीवन है। इसका दुरुपयोग रोकना हम सबका कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि वर्षा के जल को इक_ा करें ताकि भूजलस्तर भी बढ़े। अलग-अलग तालाबों, नहरों का जीर्णोद्धार करें। चेकडेम-स्टॉपडेम जैसी जलसंरचनाएं बचाएं।
वो दिन हवा हो गए जब गांव-कस्बों में प्रत्येक मंगल कार्य को स्मरणीय बनाये रखने के लिए तालाब और पोखर का निर्माण कराया जाता था। भारत में जल संरक्षण और जल संरचना को लेकर अनेक किंवदंतिया प्रचलन में है लेकिन अब मनुष्य के लालच ने नई जल संचरना का निर्माण करना तो दूर, पहले से बनी-बनायी जल संरचनाओं को मिटाने पर तुले हुए हैं। अब पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं। आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, मरने के लिए भी अब चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा, अब तो शर्म से चेहरा भी पानी-पानी नहीं होता, हमने बहुतों को पानी पिलाया, पर अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है। सोचो तो वह रोना कैसा होगा, जब हमारी आँखों में ही पानी नहीं रहेगा? वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे। आखिर में याद आता है पानी पानी रे…खारे पानी रे…
मनोज कुमार,
भोपाल, मध्यप्रदेश
(लेखक भोपाल से प्रकाशित शोध पत्रिका ‘समागम’ के संपादक हैं)