लाशों की ढेरी पर चढ़कर,
क्यों सिंघासन पाना चाहते हो।
नेता जी अपनी बरबादी का,
क्यों बीज बोना चाहते हो।
भेड़ बकरियाँ समझ हमें,
क्यों बलि चढ़ाना चाहते हो?
गरीब लाचारों की चिताओं पे,
क्यों रोटियाँ सेकना चाहते हो?
ज़रा बच के रहना नेता जी,
कहीं झुलस ना जाना तुम।
लाखों चिताओं की गरमी से,
कहीं भस्म ना हो जाना तुम।
परीक्षाएँ सारी टाल दीं,
टाल दी सारी नौकरियां।
टाल दिया जब सब कुछ ,
तो क्यों ना टालीं रैलियाँ।
टल जाते जो चुनाव ये,
तो आज बेहतर होता।
महामारी के प्रकोप से,
ना अपनों को कोई खोता।
निर्वाचन की भट्टी में क्यों,
निर्दोषों को झोंक दिया।
खा रहे मलाई जिनके दम से,
छुरा उनको क्यों भोंक दिया।
निर्वाचन करवाने ही थे,
खुद ड्यूटी भी कर लेते तुम।
आम आदमी के ऊपर बस,
इतना रहम कर देते तुम।
जरा शर्म करो ओ बेशर्मों,
शामत तेरी भी आएगी।
हाय लगी जो जनता की,
तेरी शान धरी रह जाएगी।
भक्त बिना भगवान नहीं जब,
जनता बिन कैसे नेता होंगे?
यदि वोट ना दे जनता तुमको,
तो कैसे आप विजेता होंगे?
स्वरचित
सपना (स. अ.)
प्रा.वि.-उजीतीपुर
वि.ख.-भाग्यनगर
जनपद-औरैया