कविता की बात हो तो सबसे पहले उसका भाव, फिर कलापक्ष और फिर उसका शिल्प आकर्षित करता है। विश्व कविता दिवस पर मातृभाषा डॉट कॉम द्वारा अपने कुछ कवियों की रचनाएँ संग्रहित कर पाठकों के लिए ख़ास तौर पर तैयार किया गया जिसमें आप नौ कवियों की कविताओं का आनंद उठायेंगे।
एक कविता यह जिसमें, कविता के होने का अर्थ लिखने का प्रयास है-
कविता से कवि तक
कविता किसी सन्दर्भ में,
कवि के मन का कोना दिखाती,
पर कभी प्राणबंध बनकर,
प्रणव के प्रणय का उत्सर्ग होती,
इसीलिए कवि को शाश्वत कहा।
कविता मन से ही जन तक जाती,
कविता कामायनी का अर्थ होती,
कविता हर गणित से परे रहती,
कविता जीवन का भूगोल होती,
इसीलिए कविता अमर कहलाती।
है न…?
✍🏻 डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, भारत
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1. नरेन्द्र पाल जैन, ऋषभदेव, राजस्थान
कविता
अमावस के साम्राज्य में
देखी गई,
जलकर कालिख होती हुई,
अंधेरों से लड़ने वाली
कविता।
भावों के सूरज से
तपकर,
जीवन को बूंद में
परिवर्तित कर,
नदी के किनारों पर देखी
पानी में
उतरती हुई कविता।
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन, ऋषभदेव, राजस्थान
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2. श्रीमती प्रेम मंगल, इन्दौर
रजनी का आंचल
गगन था धूमिल हो चला, मावस की थी रात,
न चंदा की चांदनी, न ग्रह-नक्षत्रों की थी बात।
चमक दिख रही मंगल तारक तुम्हारी विचित्र,
क्या कहूं,
क्या संदेश दे रहे थे तुम हे क्षितिज्ञ!
मैं अपने बाग में बैठी चहुं ओर,
निहार रही ले मधुर-मधुर स्मृतियाँ।
मेघों में टक-टक ढूंढ रही थी,
मैं छूटा हुआ-सा अपना साथी।
न जाने क्यूं ये मेघ भी,
कर रहे बिदाई का भीषण आघात।
पुरवैया के चलने से तरू का भी,
सिसक रहा सा मेरा गीत।
सूर्य रश्मियों ने जगह ली आसमां में,
फैलाया चारों ओर प्रकाश धरा में।
कण-कण मेरा सुलग रहा,
नभ में मानो आया भीषण ज्वार।
आज होने लगा रिक्त वातावरण,
राग माधुर्य का है झुका जा रहा।
मेरा मन व्याकुल था हुआ जा रहा,
बोझिल अवसाद की पीर था सह रहा।
रजनी का आंचल, ख़ुद में मुझे छुपा रहा,
फिर भी इस अवसाद ने आँखों को न मूंदने दिया।
श्रीमती प्रेम मंगल, इन्दौर
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3. माधुरी सोनी ‘मधुकुंज’, आलीराजपुर (म.प्र.)
मानव मन की व्यथा कथा जब
भावों में उमड़ती है
तब संवेदित शब्दों की इक काव्य धारा सजती है ।।
होते कहीं ख़ुशियों के द्वार, कहीं
रंग फुहारें होती हैं,
पर्वों की कहीं धूम मची हो, कहीं हास्य बहारें भी होती हैं,
फुलझड़ियाँ कुछ हास्य-व्यंग्य की आनन्दित कर देते हैं,
कवि का जीवन काव्य में बसता
वे नवरस के चहेते हें।।
शौर्य-पराक्रम की गाथा मय ओज सृजन सुंदर गढ़ते हैं,
भुजबल में लहू प्रबल ताप के कुछ अंगार उबलते हैं,
मन को शीतल तृप्त शब्द भी सरस सलिल से बहते हैं,
मुखरित होते शब्द सुमन कवि,
अंतर्मन में रचते हैं ।।
करुण वेदना के विलाप जैसे कोई नार रुदाली-सी
हृदय द्रवित हो उठी पीर की मार्मिक भाव्य विव्हाली सी
शांत, निर्वेद शब्द के लेपन घायल मन को गति देते
मधुर शृंगार रस और जुगुप्सा
काव्य भाव के प्रनेती हैं।।
बिन काव्य के रस भी अधूरे भक्ति प्रेम भी व्यर्थ हैं,
जीवन पथ के सुगम सलोने मार्ग भी निरर्थ हें ।
मन के ऐसे भाव स्पंदित जिस कवि मन में बहते हैं,
वीणावादिनी कृपावन्त वे कवि ही विरले होते हैं ।।
‘मधुकुंज’ माधुरी सोनी
आलीराजपुर
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4.रश्मिता शर्मा, इंदौर
मेरी माँ
सीधी सरल
मेरी माँ,
सदा मुस्कुराती
मेरी माँ,
संस्कारों की पूँजी
मेरी माँ,
परिवार को जोड़ती
मेरी माँ,
मेरी धड़कन
मेरी माँ,
झरनों का शीतल जल
मेरी माँ,
चाँदनी-सी धवल
मेरी माँ,
लोरी गाकर सुलाती
मेरी माँ,
ममता की पवित्र मूर्ति
मेरी माँ,
नव पुष्प खिलाती
मेरी माँ,
उर्जा भरती प्राणों में
मेरी माँ,
हर सुख का सागर
मेरी माँ,
मेरी आस्था, मेरा विश्वास, मेरी आशा
मेरी माँ,
अपना अनोखा ज्ञान देती
मेरी माँ,
नई-नई बातें सिखलाती
मेरी माँ,
मेरी ख़ामोशी को पढ़ लेती
मेरी माँ,
घने अंधेरों को उजालों में बदलती है
मेरी माँ,
ममता का साया देती
मेरी माँ,
बहुत याद आती है मुझको
मेरी माँ।
श्रीमती रश्मिता शर्मा
इन्दौर मध्यप्रदेश
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5. डॉ. अनिता राठौर मंजरी (आगरा)
मेरा सृजन
आने वाली पीढ़ी,
शायद मुझे याद न रखे
हो सकता है…
पहचाना जाए मुझे
मेरी उम्र भर की पूंजी
मेरे सृजन के ज़रिए,
अगर पहचान लो तो…
मेरे सृजन को रद्दी की टोकरी या कबाड़ी वाले के हवाले न करके
समय मिलने पर उसे प्रवाहित कर देना गंगा में,
जहां वह पावन होकर,
पुनः मेरी आत्मा में समाहित हो जाए
और मेरा सृजन अमर हो जाए मुझमें,
हर जन्म के लिए…..
डॉ. अनिता राठौर मंजरी (आगरा)
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6. अनिता दीपक, इंदौर
ओ री कविता
कविता कामिनी रस्वविलास
तुमसे छा जाता उल्लास
तुम जब भी मेरे ज़ेहन में उतरती हो
मेरे अंदर रक्त सी बहती हो
स्वछंद हो मेरे मन के आंगन में झूमती हो
भावों का उन्माद शब्दों पर छा जाता है
कही-अनकही सब बातों में ढलती हो
तुम्हारी नित नई पंक्तियाँ
भर देती सारी रिक्तियाँ
तुम होती जब शबाब पर
निखरती हो लाजवाब पृष्ठ पर
बरसती हो निर्मल जल धार-सी
हृदयतल पर पड़ती फुहार-सी
तुम आती जैसे सुरभित बयार-सी
मदमस्त कुसुमित बहार-सी
शब्दों में उतरने को छटपटाती
उमड़ घुमड़-सी हो मंडराती
लेखनी में उतरकर ख़ूब निखरती हो……
-अनिता दीपक, इंदौर
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7. डाॅ. नीना छिब्बर, जोधपुर
सब ठीक है
औरतें जब कहती हैं सब ठीक है
तब ठीक उससे पहले पर्स में रखती है अरमान
पहन कर ऊॅंची एड़ी की सैंडल द्वंद्व को टकटकाती है
कलाईयों में रखती है मात्र दो चूड़ियां संकेतात्मक
अंगुली में बसी घिसी फंसी अंगूठी दाएं -बाएं घुमाती है।
औरतें जब कहती हैं सब ठीक है
तब ठीक उसके पहले चेहरे पर पोतती हैं पाउडर,
आँखों में से निकाल फेंकती हैं निजी सपने
होंठो पर चस्पा कर लेती हैं विज्ञापनी मुस्कान
माथे पर लगा लेती हैं बड़ी चमकदार लाल बिंदी।
औरतें जब कहती हैं सब ठीक है
तब ठीक उससे पहले ज़ोर से गुनगुनाती हैं
अनजाने ही दो लटों को गोलाकार करती हैं
हथेली की रेखाओं पर हाथ फिराती हैं
आईने के सामने मुंह बना मुस्काती हैं।
डाॅ. नीना छिब्बर, जोधपुर
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8. सीता गुप्ता, दुर्ग, छत्तीसगढ़
आओ लगाएं वृक्ष
तप्त धरा जो चीत्कार रही है,
वह भी नमी सहजेगी।
मिलेंगी सांसे उसको जो फिर!
तुमको सांसे वह देगी।
प्रश्न मंच पर प्रश्न है भारी,
छांव की तलाश है जारी।
आ जाओ गौरैया रानी !
चहको तुम अब डाली-डाली।
बरखा रानी बीज को पाकर,
हरियाली फैलाएंगी।
छांव की तलाश जो हो रही,
मददगार बन जाएंगी।
पथ गामिनी भी मुस्कुरा कर,
आवागमन सहज कर देगी।
थकित पथिक की व्याकुलता को,
क्षणिक तो राहत वो भी देगी।
हर इंसा जो आज धरा पर,
एक-एक वृक्ष लगाएगा।
आने वाली संतानों को,
छांव भरा सुख दे पाएगा।
कंक्रीट के जंगल कम कर,
फलदार वृक्ष जो लगाएंगे।
पर्यावरण संरक्षण से,
सारे प्राणी नाचेंगे।
तप्त धरा जो चीत्कार रही है,
वह भी नमी सहजेगी।
मिलेंगी सांसे उसको जो फिर!
तुमको सांसे वह देगी।
✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़
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9. नीना महाजन, गाज़ियाबाद
संगीत की गूंज
आकाश अवनी तल में
जल के अविरल में
संगीत ही समाया है
संगीत में कुदरत का साया है…
पवन के स्पर्श से तरु की
हर टहनी ने गुनगुनाया है…
भौंरों की गुंजन से
गुंजित हो रहा उपवन
कोयल की कुहू कुहू से
हो गया आनंदित मन…
स्वच्छंद पक्षियों के कलरव में
झरनों की करतल ध्वनि में
सूर्य की गर्मी से निकला संगीत
सूर्यमुखी बन गया उसका मीत…
संगीत प्रकृति का
मिश्री-सी मन में घोले
ख़ुशनुमा माहौल हर ओर हो ले…
संगीत के स्वरों ने
इंद्रदेव को भी रिझाया है
जब-जब तानसेन ने
मेघमल्हार गाया है…
संगीत की धुन ने
अंधकार मिटाया है
तानसेन ने जब-जब
दीपक राग गाया है…
दिल की गहराइयों से निकले संगीत
फ़िज़ाओं में प्यार भर दे संगीत…
प्रेम मधुर संगीत है
प्रेम में ही रागिनी
प्रेम में संगीत न होता तो
कान्हा क्यों बजाते बांसुरी
राधा की पायल में भी थी
मधुर रागिनी…
संगीत की धुन
ख़ूबसूरत अहसास है
संगीत प्रत्येक के जीवन में
अमृत रूपी प्रसाद है
संगीत हम पर
मां वीणा वादिनी का आशीर्वाद है…
*नीना महाजन “नीर”, गाज़ियाबाद*