आप सभी से साझा करते हुए हर्ष हो रहा है की मध्य प्रदेश हिंदी माध्यम में चिकित्सा शिक्षा प्रारंभ करने वाला देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। ये हम सभी के लिए गर्व का विषय है। स्वराज अमृत महोत्सव वर्ष में गुलामी की मानसिकता को छोड़ आत्मगौरव के भाव जागरण का ये कदम एक और मील का पत्थर साबित होगा। गौरतलब है की अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्विद्यालय द्वारा २०१६ में तकनीकी शिक्षा का पाठ्यक्रम भी हिंदी में प्रारंभ किया गया था। साथ ही चिकित्सा शिक्षा हेतु भी प्रस्ताव भेजा गया था, किंतु भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा अनुमति प्राप्त नहीं हुई थी। तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम निर्माण के दौरान पुस्तकों का शब्दश: अनुवाद होने के कारण, पाठ्यक्रम क्लिस्ट हो गया और जल्द ही बंद करना पड़ा। उसके बाद इस ओर कोई काम नहीं हुआ। लगभग सात वर्ष पश्चात पुनः सरकार पूरी तैयारी के साथ मैदान में है। तकनीकी शब्दावली में बिना परिवर्तन किए उन शब्दों को उसी रूप में चिकित्सा शिक्षा के हिंदी माध्यम के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। इन पुस्तकों को इस प्रकार तैयार किया गया है की हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले विद्यार्थी, अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वालों से कतई कमतर नहीं होंगे। वे विद्यार्थी जिनका सपना भाषा की बाध्यता के कारण अधूरा रह जाता था, अब वो भी सभी बाधाओं को पार कर देश में चिकित्सा के क्षेत्र में अपना योगदान दे पायेंगे।
आगामी रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भोपाल में भव्य समारोह में चिकित्सा शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और अन्य शैक्षिक क्षेत्र से जुड़े शिक्षाविदों के साथ ही, साहित्यकारों और राष्ट्रभाषा को स्थापित करने हेतु काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में प्रथम वर्ष की चिकित्सा शिक्षा की हिंदी माध्यम की पुस्तकों का अनावरण करने जा रहे हैं। ये मध्य प्रदेश के साथ ही पूरे देश के लिए भी गौरव का क्षण है। स्वाभाविक रूप से इससे राष्ट्रभाषा के स्थापित होने के साथ ही युवा पीढ़ी के आत्मविश्वास में वृद्धि और देश को नई वैश्विक पहचान मिलना तय है। वर्तमान में जापान, फ्रांस, चीन, इजराइल जैसे कई देश अपनी भाषा में ही उच्च शिक्षा देकर युवाओं को राष्ट्र सर्वोपरि के भाव से भी जोड़े रखते हैं।
इस प्रकार के सशक्त निर्णयों से जंहा एक ओर अंग्रेजी पर निर्भरता की मानसिकता को जड़ से समाप्त करने में सहायता मिलेगी, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रभाषा का गौरव स्थापित होने के साथ ही ब्रेन ड्रेन (स्वदेश से सीखकर, विदेशों में स्थापित होना) में भी गिरावट अवश्य होगी। भविष्य में तकनीकी शिक्षा, नर्सिंग, पेरा मेडिकल जैसे अन्य कई पाठ्यक्रमों में हिंदी माध्यम में प्रवेश के साथ ही विद्यार्थियों का इस ओर रुझान बढ़ेगा। मूलरूप से ये केवल चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में बड़े परिवर्तन का आरंभ नहीं अपितु हमारे देश की सनातन संस्कृति और वैज्ञानिक जीवन पद्धति के विस्तारीकरण का प्रदुर्भव है।
२०१५ से ही मैकाले की गुलामी की मानसिकता वाली शिक्षा नीति को जड़ से समाप्त करने वाली ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गौरव का जागरण करने वाली शिक्षा नीति के संबंध में विस्तृत विचार मंथन हुआ। जिसका परिणाम राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० हमारे समक्ष है। ये वैचारिक मंथन यहीं नहीं रुका, लगातार विभिन्न संशोधनों और विस्तारीकरण के साथ जारी है। विगत कुछ वर्षों से देशभर में विभिन्न राज्यों की शिक्षा प्रणाली के गहन अध्ययन के पश्चात, मातृभाषा में शिक्षा को लेकर जो विचार बलवती हुआ है, वह चिरस्थाई बने इसकी चिंता हम सभी को मिलकर करना होगी। ये केवल भाषा का विषय नहीं है, ये राष्ट्र जागरण से जुड़ा भाव है जो ऐतिहासिक गौरवशाली कालखंड के रूप में सदैव स्मरण किया जाएगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से मातृभाषा के आधार पर जनमानस को जोड़ना, देश की सांस्कृतिक विरासत को सिंचित और संवर्धित करने हेतु माननीय प्रधानमंत्री जी के प्रयासों को साधुवाद और १६ अक्टूबर २०२२ को पहली बार चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रम का हिंदी माध्यम में अनावरण, देश के इतिहास में अंकित करने हेतु मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और चिकित्सा शिक्षा मंत्री का अभिनंदन।
विगत कुछ वर्षों में देश में अनवरत गुलामी के प्रतीकों के ध्वस्त होने, सनातन संस्कृति और मानबिंदुओं के पुनर्स्थापित होने के साथ ही राष्ट्रभाषा का स्थापित होना भी सुखद एहसास है। आइए इस ओर हम भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और स्वराज अमृत महोत्सव के साथ स्वभाषा के गौरव के जागरण का बीड़ा उठाएं।
माला सिंह ठाकुर
सामाजिक कार्यकर्ता
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