मैं किस हद तक जाउंगा, ये खुद नहीं जानता,
किस मोड़ और रास्ते से जाउंगा,नहीं जानता।
आने और जाने से क्या फर्क पड़ेगा किसी को,
आवाज की दुनिया में किसी को नहीं जानता।
परदा नहीं किसी से,जो मुँह फेर लूँगा बातों से,
किसी से क्या गिला और शिकवा,नहीं जानता।
दूर कहीं निगाहों तक कुछ तो साए हुए ही होंगे,
बस जाए फिर जहाँ तन्हाई,तो साए नहीं जानता।
जब होने लगे बात सफ़र वालों की,तो समझना,
उनके रास्ते करीब,या मंजिल दूर,नहीं जानता।
रुकने से भी अब तो यहाँ वक्त नहीं रुकने वाला,
ठहरा आखिर मुसाफिर,वक्त को भी नहीं जानता।
#मनीष कुमार ‘मुसाफिर’
परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।