अनेक्य में एका-सी
आभा लहराई है।
गर्वीले इतिहासी
आभूषण ने माँ
तेरी शान बढ़ाई है॥
अमृत-सी तेरी वाणी
में असंख्य भाषाई
त्रिवेणियां बल खाई हैं।
माँ तेरे माथे की
बिन्दियां ज्ञान सूर्य
बन,जग चमकाई हैं॥
पग को धोता हिन्द
है द्योतक यहाँ,
वेद-योग की गहराई है।
वीर सपूतों की तू
जननी, बैरी को
धूल चटाई है॥
साहित्य-कला का
दर्पण है मुख,
संस्कृति विश्व सराही है।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।