कुछ वक़्त पहले मै रायपुर से भोपाल आ रही थी तो ट्रेन में साथ की सीट पर बैठे लोग अपने अपने फ़ोन या लैपटॉप पे व्यस्त थे। में भी कुछ पढ़ने में व्यस्त थी क्योकि पेपर नज़दीक थे। सफर के कुछ पांच से छह घंटे ऐसे ही बीते। तभी अचानक एक सज्जन मोबाइल का एक मैसेज देखकर परेशान होने लगे। ये देखकर एक सज्जन ने पूछा कि अचानक क्या परेशानी हो गई ?तब उन्होंने बताया कि उनका बीस साल के बेटे को अस्पताल में एडमिट किया है क्योकि वह कई दिनों से डिप्रेशन में है। उन्होंने आगे बताया कि वो हमेशा सोशल मीडिया से जुड़ा रहता था,उसके फेस बुक में भी हज़ार से ज़्यादा दोस्त हैं पर समझ नहीं आ रहा कि फिर भी वो डिप्रेशन में कैसे हो सकता है?यह सब सुनकर वहां पर चर्चा का ऐसा दौर शुरू हुआ मानो विश्व के सभी ज्ञानी लोग वही बैठे हैं और प्रत्येक के श्रीमुख से ज्ञान कि अविरल धारा बह रही है। किसी का कहना था कि आजकल कि दोस्ती में वो पुराने ज़माने की दोस्ती जैसी बात नहीं है तो कोई कह रहा था कि आज कल कोई एक दूसरे से बात नहीं करता,सब बस फ़ोन पर ही लगे रहते है। इतना सुनते ही मुझे हसी आ गई और मैं बरबस ही बोल पड़ी कि थोड़ी देर पहले तक हम सब भी यही कर रहे थे। कुछ देर इस बात पर चर्चा हुई और फिर सब शांत हो गए।
आज जब ये घटना याद आई तो इससे जुडी कई बातें समझ आई। जैसे फेसबुक पर हज़ारो कि फ्रेंड लिस्ट मगर फिर भी बात करने के लिए कोई सच्चा दोस्त नहीं है,परिवार और घर दोनों छोटे हो गए हैं मगर फिर भी हर व्यक्ति अपने लिए एक कोना ढूंढ ही लेता है,और जिनके माकन बड़े हैं उनमे रहने वाले लोग गिने चुने हैं,हज़ारो मील दूर बैठे लोगो से सोशल मीडिया से जुड़े रहना पसंद है हमें मगर हमारे बाजू में बैठे इंसान से बात नहीं करना चाहते हम। हर किसी को बस सेल्फी चाहिए,फैमिली फोटो पर ध्यान ही नहीं जाता आज किसी का। भीड़ में भी अकेलेपन से जूझ रहे हैं हम। और संवेदनहीन तो इतने हो गए है कि आज कि इस महामारी के दौर में जब मौत का तांडव मचा हुआ है तब भी हम में से कुछ लोग ज़िन्दगी और मौत दोनों का व्यापर कर रहे हैं। कोई ब्लैक में इंजेक्शन बेच रहा हैं तो कोई किसी शव को शमशान घाट तक ले जाने के हज़ारो रुपये मांग रहा है। सारी ज़िन्दगी जातपात के नाम पर दूसरो को प्रताड़ित करने वालो के किसी अपने को न जाने किसकी चिता के साथ जलाया गया हो ! क्योकि शमशान घाट में तो जैसे शवों का मेला लगा हुआ है। होम आइसोलेशन का दर्द झेलने और सुनने के बाद भी अकेलेपन का दंश क्या होता है ये न जाने कितने लोग समझे हैं ?
ज़रूरत अकेलापन क्या हैं और क्यों हैं ये दोनों बातें समझने की है। क्या है ,ये तो वक़्त हर किसी को बता ही देगा मगर क्यों है ,अगर ये हम वक़्त रहते नहीं समझे तो हमारे वाली पीढ़ियों को रिश्तो का अर्थ बताने के लिए हमारे पास कुछ न होगा। न अपने होंगे न अपनापन ,न दोस्त होंगे न दोस्ती। अगर कुछ होगा ,तो बस अकेलापन और सोशल मीडिया पर दोस्तों की लम्बी लिस्ट।
#श्वेता अपशंकर पारसे
इन्दौर, मध्यप्रदेश
#परिचय-
नाम- श्वेता अपशंकर पारसे,
शिक्षा- M.A. Public Administration
संप्रति- शिक्षिका
स्थान- इन्दौर, मध्यप्रदेश