दे विरह वेदना कौन ? तड़पा गया,
बन के छलिया,छल के कहां चला गया।
मैं बिलखती हृदय में यूँ संताप ले,
अश्रु गिरते नयन के हैं अब बह चलें।
कौन दुष्यन्त बनकर हमारा नयन,
दे गया यूँ निशानी न लगता है मन॥
कौन परदेशिया लूट सब कुछ गया,
इस अभागिन को कैसे दगा दे गया।
दे विरह…॥
दे गया कुछ निशानी भी मझधार में,
तुम तड़पती रहो उम्रभर प्यार में।
वह क्षणिक भर मिलन मन दु:खी कर गया,
एक दु:खिया को सुखिया दगा दे गया॥
जिन्दगी का मिलन तो अधूरा रहा।
पर भरत आज सम्राट बन ही गया।
दे विरह…॥
किन्तु दुष्यन्त बनने में भी राज है,
बन के दुष्यन्त फिर भी बना ताज है।
किसी पुष्प की ऐसी मृदुल प्यास है,
बन कली खिल गई,कालिदास की आस है॥
किन्तु दुर्वाशा का श्राप पा ही गया,
मेरे जीवन को सुखमय बना ही गया।
दे विरह…॥
#डॉ.उर्मिला साव ‘कामना’
परिचय : डॉ.उर्मिला साव का उपनाम ‘कामना’ है। आपकी जन्म तारीख ११ नवम्बर १९६७ है। निवास कोलकाता में पी.के.टैगोर स्ट्रीट में है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता की डॉ.साव की ६ पुस्तक
आ चुकी है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आप बहुत सक्रिय हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य हिंदी भाषा को बढ़ावा देना और सुविचारों को फैलाना है।