अच्छा लगता है जब
कहीं से कोई
पूछता है हाल आपका हौले से
यह कहकर कि आप कैसे हो ?
महसूस होने लगती है
कुछ गर्माहट रिश्तो की ।
टूटे हुए से संवाद
कहीं फिर से जुड़ने की
कोशिश करने लगते हैं ।
एक खालीपन का छाया हुआ सा
बवंडर टूटने लगता है
विचारों के जाल से ।
शर्म से लरजते
बंद होंठ
कुछ और कहने की
हिमाकत करने लगते हैं ।
रुकी हुई सांसे
फिर से शब्दों से
अठखेलियां करने आतुर होने लगती हैं ।
गुमसुम ,बेगाना सा
मन
फिर से गुनगुनाने लगता है
कुछ भूले – बिसरे से गीत खयालों में।
जागने लगते हैं एहसास हृदय में
अपनत्व के।
खत्म होने लगती है बेदनायें
सारी तन – बदन की
मिल जाता है एक अवर्णनीय सा
सुकून अंतर्मन को
उन शब्दों के जादू से।
स्मिता जैन