तुझे भुला कर देखते है,
ज़िन्दगी को फिर आज़मा कर देखते है।
क्या फायदा है रो कर,
नया ख़्वाब सजा कर देखते है।
करते है नई शुरुआत फिर से,
नये रास्ते पर चलकर देखते है।
तुम तो चले गये हमे भूल कर,
हम भी तुम्हे भुलाकर देखते है।
जो खाली जगह है तुम्हारे जाने से,
उस खालीपन को भर कर देखते है।
जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो,
उस रास्ते पर चल कर देखते है।
समय ने बहुत फ़र्क ला दिया तुझमे,
हम भी समय के साथ ढल के देखते है।
जब तुमने किसी को अपना बना लिया है,
तो हम भी किसी को अपना बनाकर देखते है।
शोएब खान
शिवली कानपुर देहात