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आषाढ़ में बारिश की
कुछ बूंदे पड़ते ही
निर्जन सी भूमि पर
मुरझाई सी हरीतिमा
अपने हरियाले सौंदर्य से
आलहादित होकर
परिपूर्णता को प्राप्त करती है
भूल जाती है गर्मी की प्रचंडता
लू के झकझोरते थपेड़ों को
उस नीरवता को
अपनी चिर-परिचित
स्मिता के साथ
आह्वान करती है
नये सावन -भादों का
सृजन करने को
आतुर होती है
नये जीवन का
बांहों में
अगाध जल राशि को थामकर
नये कोंपलों के प्रस्फुटन के साथ।
स्मिता जैन
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