कात्यायनी (माता का छठा रूप )

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पराम्बा शक्ति पार्वती के नौ रूपों में  छठा रूप  कात्यायनी का है । अमरकोष के अनुसार यह पार्वती का दूसरा नाम है। यजुर्वेद में प्रथम बार  ‘कात्यायनी’ नाम का उल्लेख मिलता है। ऐसी मान्यता  है  कि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए  देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं और महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या माना इसलिए माता कात्यायानी कहलाईं  । इसमें माँ के हाथ में कमल और तलवार शोभित है।
प्रतीकों पर गौर करें तो यह प्रतीक है  कि आदिशक्ति  साधक से मिल रही हैं ।
इसमें साधक का ध्यान आज्ञा-चक्र पर रहता है, जो दोनों भृकुटियाँ के मध्य अवस्थित है और जो  आत्म-तत्त्व का  परिचायक है ।
 योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना गया है।
मान्यता है कि परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे साधकों की साधना फलीभूत होती है और भक्तों को सहज ही माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
कात्यायनी माँ की आराधना का मंत्र :
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन | कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ||

#कमलेश कमल

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