
हम भी किस से
दिल लगाकर बैठे है।
जो जमाने से डरकर
घर में बैठे है।
मोहब्बत की बातें
दिन रात करते थे।
जब मिलनेका वक्त आया
तो डरके घरमें बैठे गये।।
डर-डर के मोहब्बत तो
हमने शुरु की थी।
वो न जाने आज
किस डरको ले बैठे है।
अब भी वक़्त है सनम
घर से निकलकर देखो।
तेरे दीदार को हम
तेरे घरके सामने बैठे है।।
तेरे इंतज़ार में अब
पत्थर के हो गये है।
न जाने किस डरपोक से
मोहब्बत करके बैठे है।
वो मेहबूब के लिए तो
बहुत तरस रही है।
पर जमाने के डर से
नहीं मिल पा रही है।।
अब ये दिल संभल
नहीं रहा तुम्हारे बिना।
कैसे आऊं मैं अब
तुम्हारे दिलके अंदर।
जो भी है बात दिलमें
खुलकर कह दीजिये।
और अपने मन को
हल्का कर लीजिये।।
दिलमें लगी है जो आग
उसे बुझने मत देना।
मोहब्बत की लो को
दिलमें जलाये रखना।
दिलके अंगारो को
ओठों पर तुम रख देना।
और मोहब्बत के दीप
जबा दिलो में जला देना।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई